राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस, बच्चों को कृमिनाशक गोली खिलाई गयी।
बच्चों की रोग मुक्त रखना ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का एकमात्र उद्देश्य : डॉ कुलदीप सिंह सीएमओ
राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस पर विद्यालय के 1600 बच्चों को दी गयी एल्बेंडाजोल की चबा कर खाएं जाने वाली गोली।
राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस पर विद्यालय के 1600 बच्चों को दी गयी एल्बेंडाजोल की चबा कर खाएं जाने वाली गोली।
राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय कैम्प यमुनानगर में राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस के अवसर पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ कुलदीप सिंह व वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ सुनील कुमार ने अपनी टीम सहित अपने हाथों से विद्यार्थियों को कृमिनाशी एल्बेंडाजोल की टेबलेट खिलाई।
इस अवसर पर एक सेमिनार का भी आयोजन किया गया। इस सेमिनार में विद्यालय के विज्ञान क्लब, इको क्लब, एनएसएस, एनसीसी कैडेट्स व स्काउट-गाइड ने भाग लिया। इस विचारगोष्ठी व अभियान का शुभारम्भ विद्यालय के प्रधानाचार्य परमजीत गर्ग ने किया।
इस अवसर पर एक सेमिनार का भी आयोजन किया गया। इस सेमिनार में विद्यालय के विज्ञान क्लब, इको क्लब, एनएसएस, एनसीसी कैडेट्स व स्काउट-गाइड ने भाग लिया। इस विचारगोष्ठी व अभियान का शुभारम्भ विद्यालय के प्रधानाचार्य परमजीत गर्ग ने किया।
बच्चों को संबोधित करते हुए डिप्टी सिविल सर्जन डॉ सुनील कुमार बताया कि देश भर में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नेशनल डीवार्मिंग अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान में विद्यालय के बच्चों को फरवरी व अगस्त महीने में कृमिनाशक एलबेंडाजॉल की चबा कर खाएं जा सकने वाली एक एक गोली दी जाती है। जिससे वो पेट के कीड़ों से बचे रहेंगे। आज जो बच्चे छूट गए हैं उनको 27 अगस्त को यह दवाई दी जायेगी।
जिला के मुख्य चिकित्सा अधिकारी श्री कुलदीप सिंह ने अपने वक्तव्य में बताया कि बच्चो में इनसे संक्रमित होने का खतरा सबसे अधिक होता है। इनसे सभी आयु वर्गों बड़े या बच्चे, सभी को अधिक सतर्क रहने की जरूरत होती है।
राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस के अवसर पर विद्यार्थियो को जिनकी आयु 1 वर्ष से 19 वर्ष तक है को कृमिनाशक गोलियां खिलाई जा रही है। अभी विशेषकर गोलकृमी एस्केरिस की दवाई दी जा रही है जिसको खाने से बच्चे इस कृमि के अटैक से बचे रह सकते हैं। कुपोषित बच्चे के पेट में कृमि होने की अधिक संभावना होती है। सीएमओ ने बच्चों को पैकेट बंद पापड़, चिप्स व स्नेक्स खाने से परहेज करना चाहिये।
डॉ बुलबुल ने बच्चों को पेट में पाए जाने वाले कीड़ों (कृमियों) के कारण, हानियों व उनसे बचाव के उपायों बारे जागरूक किया।
कार्यक्रम का मंच संचालन हिंदी प्रवक्ता अरुण कुमार कहैरबा ने किया।
विद्यालय के विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल बवेजा ने पेट के कीड़ो बारे विस्तार बताया।
डॉ बुलबुल ने बच्चों को पेट में पाए जाने वाले कीड़ों (कृमियों) के कारण, हानियों व उनसे बचाव के उपायों बारे जागरूक किया।
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विद्यालय के विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल बवेजा ने पेट के कीड़ो बारे विस्तार बताया।
क्या होते हैं पेट के कीड़े?
पेट के कीड़े असल में परजीवी होते हैं जो हमारे शरीर में रह कर शरीर से ही अपना पोषण पाते हैं। गोल कृमि (एस्केरिस), फीता कृमि, हुकवार्म, लिवेरफ़्लूक, पिनवार्म, फाइलेरिया वार्म सब परजीवी हैं जो जीवों के शरीर में रह कर अपना पोषण करते हैं और फलस्वरूप अन्य जीवों को बीमार कर देते हैं।
इनके सक्रमण के कारण।
खुले में मल त्याग, भोजन से पहले हाथों का अच्छे से ना धोया जाना, सब्जी फलों को बिना धोये खाना, नंगे पैर चलना, दूषित जल को पीना, भोजन को ढ़क कर न रखना आदि बहुत से कारण हैं जिस वजह से इन कृमियों के अंडे मानव शरीर में पहुँच जाते हैं। जीवों के मल के साथ इनके अंडे शरीर के बाहर आते है और फिर विभिन्न माध्यमों से अन्य जीवों के शरीर में पहुँच जाते हैं। बाजार में बिना ढके खाद्य पदार्थ भी धूल मिट्टी के कारण इनके अण्डों से दूषित हो जाते हैं। खुले में रखे पदार्थों को नहीं खाना चाहिए।
संक्रमण के लक्षण
इन कृमियों से पीड़ित बच्चों को आम तौर एनिमिक पाया जाता हैं। इनमे खून की कमी होती है। ये पेट के कीड़े ही बच्चों में खून की कमी और एनिमिया का कारण बनते है। खुराक लेने के बाद भी बच्चे कमजोर व पीतवर्ण लगते हैं। कुपोषित, चिड़चिड़ा व्यवहार प्रकट करते हैं।
दो आवश्यक क्रियाकलाप
बच्चों में कुछ भी खाने से पहले साबुन से हाथ धोने की आदत को विकसित किया जाना जरूरी है। सब्जियों को अच्छे से धोकर पका कर खाना चाहिए। फलों को भी धोकर खाना चाहिए।
इस अवसर पर प्रवक्ता अरुण कुमार कैहरबा, डिप्टी सिविल सर्जन डॉ बुलबुल , राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम टीम के डॉ राजकुमार, डॉ गीता सागर कुमार फार्मासिस्ट, कमलेश एएनएम, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य मिशन के काउंसलर सज्जन कुमार, डॉ मधु राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य मिशन के जिला समन्वयक अरुण कुमार मौके पर उपस्थित रहे।
पेट के कीड़े असल में परजीवी होते हैं जो हमारे शरीर में रह कर शरीर से ही अपना पोषण पाते हैं। गोल कृमि (एस्केरिस), फीता कृमि, हुकवार्म, लिवेरफ़्लूक, पिनवार्म, फाइलेरिया वार्म सब परजीवी हैं जो जीवों के शरीर में रह कर अपना पोषण करते हैं और फलस्वरूप अन्य जीवों को बीमार कर देते हैं।
इनके सक्रमण के कारण।
खुले में मल त्याग, भोजन से पहले हाथों का अच्छे से ना धोया जाना, सब्जी फलों को बिना धोये खाना, नंगे पैर चलना, दूषित जल को पीना, भोजन को ढ़क कर न रखना आदि बहुत से कारण हैं जिस वजह से इन कृमियों के अंडे मानव शरीर में पहुँच जाते हैं। जीवों के मल के साथ इनके अंडे शरीर के बाहर आते है और फिर विभिन्न माध्यमों से अन्य जीवों के शरीर में पहुँच जाते हैं। बाजार में बिना ढके खाद्य पदार्थ भी धूल मिट्टी के कारण इनके अण्डों से दूषित हो जाते हैं। खुले में रखे पदार्थों को नहीं खाना चाहिए।
संक्रमण के लक्षण
इन कृमियों से पीड़ित बच्चों को आम तौर एनिमिक पाया जाता हैं। इनमे खून की कमी होती है। ये पेट के कीड़े ही बच्चों में खून की कमी और एनिमिया का कारण बनते है। खुराक लेने के बाद भी बच्चे कमजोर व पीतवर्ण लगते हैं। कुपोषित, चिड़चिड़ा व्यवहार प्रकट करते हैं।
दो आवश्यक क्रियाकलाप
बच्चों में कुछ भी खाने से पहले साबुन से हाथ धोने की आदत को विकसित किया जाना जरूरी है। सब्जियों को अच्छे से धोकर पका कर खाना चाहिए। फलों को भी धोकर खाना चाहिए।
इस अवसर पर प्रवक्ता अरुण कुमार कैहरबा, डिप्टी सिविल सर्जन डॉ बुलबुल , राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम टीम के डॉ राजकुमार, डॉ गीता सागर कुमार फार्मासिस्ट, कमलेश एएनएम, राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य मिशन के काउंसलर सज्जन कुमार, डॉ मधु राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य मिशन के जिला समन्वयक अरुण कुमार मौके पर उपस्थित रहे।
Darshan Lal Baweja
Science Teacher Cum Science Communicator
Secretary C V Raman VIPNET science Club VP-HR 0006 (Platinum category Science club-2017) Yamuna Nagar
Distt. Coordinator NCSC-DST, Haryana Vigyan Manch Rohtak, Science Blogger,
Master Trainer for Low/Zero Cost Science Experiments, Simple Science Experiments, TLM (Science) Developer
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