चन्द्रग्रहण, सुपरमून, ब्लूमून व ब्लड मून एक साथ Lunar Eclipse, Super Moon, Blue Moon and Blood Moon
'खगोलीय घटनाओं का आनंद लें इनसे डरे नही'
खगोलीय घटनाओं का सभी के लिए अपने अपने अपने मतानुसार विशेष महत्व होता है। ज्योतिषी इसे ज्योतिषिय मान्यताओं से जोड़ कर देखता है तो खगोलशास्त्री, विज्ञान शिक्षक, विद्यार्थी व वैज्ञानिक इसे अनुसंधान व ज्ञानार्जन के उद्देश्यों से देखता है।
विद्यार्थियों को समसामयिक खगोलीय घटनाओं से अपडेट रखने व उनको ये खगोलीय घटनाये दिखाने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वो इससे जुड़े विज्ञान को समझ कर इनसे सम्बंधित काल्पनिक कथाओं व इनसे जुड़े अंधविश्वासों से मुक्त हो सकेंगे। उनकी रुचि अंतरिक्ष व खगोलविज्ञान में बढ़ेगी जिससे वो इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का भी मन बना सकते हैं। क्योंकि विज्ञान की अन्य शाखाओं के मुकाबले खगोलविज्ञान व अंतरिक्ष विज्ञान मे अभी बहुत सी नई खोजों व अविष्कारों की अपार सम्भावनाएं शेष हैं।
कक्षा पांच में ही बच्चों को पढ़ा दिया जाता है कि जब चंद्रमा पृथ्वी के पीछे उसकी उपच्छाया व प्रच्छाया में आता है तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नही पहुंच पाता इस कारण चंद्रमा नही दिखाई पड़ता। इस स्थिति को चंद्रग्रहण कहते हैं। चंद्रग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है। चंद्रग्रहण को, सूर्यग्रहण के विपरीत, आँखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा के देखा जा सकता है।
चंद्रमा का अपना प्रकाश नही होता वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है।
क्यों है 31 जनवरी 2018 महत्त्वपूर्ण?
खगोलीय घटनाओं ने सदा से ही मनुष्य को आकर्षित किया है। प्राचीन मानव भी हैरत में पड़ जाता था कि रोज एक ही जगह से देखने पर भी चंद्रमा के आकार परिवर्तन क्यों होता है? पूर्ण चंद्र व अमावस्या उसे अचंभित करते थे। निरन्तर अवलोकन व प्रेक्षण से मानव ने चंद्रकलाओं को समझा।
31 जनवरी को चंद्रमा की कईं सारी खगोलीय घटनाएं एक साथ घटित हो रही हैं ऐसा संयोग 35 वर्ष के बाद बन रहा है। 31 जनवरी को चन्द्रग्रहण, सूपर मून, ब्लू मून, ब्लड मून खगोलीय घटनाएं घटित होंगी। ऐसा पहले 30 दिसम्बर 1982 को घटित हुआ था। पृथ्वी के एक स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के लिए खगोलीय घटनाओं की पुनरावृत्ति बहुत लंबे समय बाद होती है इसलिए इन घटनाओं का आनन्द लेना चाहिए न कि इनसे डर कर घर में दुबकना चाहिये।
आओ सुपरमून को जानें।
चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर अपनी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी के चक्कर लगाता है। परिक्रमा पथ दीर्घवृत्ताकार होने के कारण वह एक बार पृथ्वी से अधिकतम दूरी से व एक बार न्यूनतम दूरी से गुजरता है। तो एक समय ऐसा भी आता है जब चंद्रमा पृथ्वी से न्यूनतम दूरी पर स्थित होता है। यदि उस दिन पूर्णिमा भी हो तो यह परिघटना सुपरमून कहलाती है। ऐसी स्थिति आने पर चंद्रमा उस दिन अन्य पूर्णिमाओं के अपने आकार से 14 प्रतिशत बढ़ा व 30 प्रतिशत अधिक चमकदार दिखाई देता है। यह स्थिति एस्ट्रो फोटोग्राफर्स के लिए बेहतरीन शॉट्स लेने के लिए उत्तम होती है। सुपरमून शब्द सर्वप्रथम अमेरिकी खगोलविद रिचर्ड नोल द्वारा वर्ष 1979 में प्रयोग किया गया था। सुपरमून कोई आधिकारिक खगोलीय शब्द नहीं है।
' पूर्ण चंद्रमा का अपने परिक्रमा पथ पर पृथ्वी से न्यूनतम दूरी पर होना सुपरमून है।'
आओ जाने क्या हैं ब्लू मून?
वर्ष मास गणना के दो तरीके हैं एक सौर वर्ष व दूसरा चंद्र वर्ष। एक सौर वर्ष के 12 महीनों (365.24 दिन) में 12 चंद्र मास के कुल दिनों (354.36 दिन) से कुछ दिन (5.88 दिन) अधिक होते हैं। इसलिए प्रत्येक 2.7154 वर्ष के अंतराल पर एक मौसम खंड में 3 की बजाय 4 पूर्णिमाएँ पड़ती हैं। इस स्थिति को साधारण शब्दों में कहें तो किसी एक सौर महिने में दो बार चंद्रमा का पूरा निकलना ब्लू मून कहलाता है। इस वर्ष 2 जनवरी को पूर्णिमा थी और अब 31 जनवरी को भी पूर्णिमा है इसलिए 31 जनवरी के पूर्ण चंद्रमा को ब्लू मून नाम दिया गया। खगोल विज्ञान में फार्मर्स अल्मनक द्वारा दी गयी ब्लू मून की इस परिभाषा को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है।
'ब्लू मून एक खगोलीय मौसम में एक अतिरिक्त पूर्णिमा के अस्तित्व की घटना को कहते है।'
क्यों कहते हैं ब्लड मून (ताम्र चंद्र) ?
चंद्रोदय के समय चंद्रमा जैसे ही पृथ्वी की छाया में आएगा तो उसका रंग ताम्बे के रंग जैसा (हल्का लाल) प्रतीत होता है। इस स्थिति में अंतरिक्ष मे चंद्रमा पृथ्वी की परछाई क्षेत्र में होता है तो उस तक सूर्य का प्रकाश केवल पृथ्वी के वायुमंडल से होकर पहुंचता है। मात्र क्रिश्चियन मान्यताओं में ही ब्लड मून का जिक्र है।
यह दुर्लभ नजारा लेने का समय व स्थान:
31 जनवरी से एक दिन पहले आप एक जगह निर्धारित करले जहाँ से पूर्वी दिशा में चंद्रमा को अच्छे से देखा जा सके। आपके शहर या गाँव में 31 जनवरी को चंद्रोदय जितने बजे होगा उस समय से पूर्व वहाँ पहुँच जाएं।
यमुनानगर में 31 जनवरी को चंद्रोदय का समय सायं 5 बजकर 21 मिनट है। अगर मौसम ने साथ दिया तो ये ग्रहण 31 जनवरी को 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 42 मिनट के बीच नजर आएगा। ये नजारा लेने के लिए खुले मैदान में जाकर क्षितिज के साथ से ही चन्द्रोदय के समय से ही उसे देखना होगा। इसके अवलोकन के लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नही होती है। अवलोकन स्थल के आसपास ऊंचे भवन व पेड़ न हों।
इसे भारत के साथ-साथ इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी देखा जायेगा। इसे अमेरिका के अलास्का, हवाई और कनाडा में भी अवलोकित किया जा सकेगा।
मिडिया रिपोर्टस
पंजाब केसरी व दैनिक जागरण
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'खगोलीय घटनाओं का आनंद लें इनसे डरे नही'
विद्यार्थियों को समसामयिक खगोलीय घटनाओं से अपडेट रखने व उनको ये खगोलीय घटनाये दिखाने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वो इससे जुड़े विज्ञान को समझ कर इनसे सम्बंधित काल्पनिक कथाओं व इनसे जुड़े अंधविश्वासों से मुक्त हो सकेंगे। उनकी रुचि अंतरिक्ष व खगोलविज्ञान में बढ़ेगी जिससे वो इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने का भी मन बना सकते हैं। क्योंकि विज्ञान की अन्य शाखाओं के मुकाबले खगोलविज्ञान व अंतरिक्ष विज्ञान मे अभी बहुत सी नई खोजों व अविष्कारों की अपार सम्भावनाएं शेष हैं।
कक्षा पांच में ही बच्चों को पढ़ा दिया जाता है कि जब चंद्रमा पृथ्वी के पीछे उसकी उपच्छाया व प्रच्छाया में आता है तो सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नही पहुंच पाता इस कारण चंद्रमा नही दिखाई पड़ता। इस स्थिति को चंद्रग्रहण कहते हैं। चंद्रग्रहण की अवधि कुछ घंटों की होती है। चंद्रग्रहण को, सूर्यग्रहण के विपरीत, आँखों के लिए बिना किसी विशेष सुरक्षा के देखा जा सकता है।
चंद्रमा का अपना प्रकाश नही होता वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है।
क्यों है 31 जनवरी 2018 महत्त्वपूर्ण?
खगोलीय घटनाओं ने सदा से ही मनुष्य को आकर्षित किया है। प्राचीन मानव भी हैरत में पड़ जाता था कि रोज एक ही जगह से देखने पर भी चंद्रमा के आकार परिवर्तन क्यों होता है? पूर्ण चंद्र व अमावस्या उसे अचंभित करते थे। निरन्तर अवलोकन व प्रेक्षण से मानव ने चंद्रकलाओं को समझा।
31 जनवरी को चंद्रमा की कईं सारी खगोलीय घटनाएं एक साथ घटित हो रही हैं ऐसा संयोग 35 वर्ष के बाद बन रहा है। 31 जनवरी को चन्द्रग्रहण, सूपर मून, ब्लू मून, ब्लड मून खगोलीय घटनाएं घटित होंगी। ऐसा पहले 30 दिसम्बर 1982 को घटित हुआ था। पृथ्वी के एक स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के लिए खगोलीय घटनाओं की पुनरावृत्ति बहुत लंबे समय बाद होती है इसलिए इन घटनाओं का आनन्द लेना चाहिए न कि इनसे डर कर घर में दुबकना चाहिये।
आओ सुपरमून को जानें।
चंद्रमा पृथ्वी के चारो ओर अपनी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी के चक्कर लगाता है। परिक्रमा पथ दीर्घवृत्ताकार होने के कारण वह एक बार पृथ्वी से अधिकतम दूरी से व एक बार न्यूनतम दूरी से गुजरता है। तो एक समय ऐसा भी आता है जब चंद्रमा पृथ्वी से न्यूनतम दूरी पर स्थित होता है। यदि उस दिन पूर्णिमा भी हो तो यह परिघटना सुपरमून कहलाती है। ऐसी स्थिति आने पर चंद्रमा उस दिन अन्य पूर्णिमाओं के अपने आकार से 14 प्रतिशत बढ़ा व 30 प्रतिशत अधिक चमकदार दिखाई देता है। यह स्थिति एस्ट्रो फोटोग्राफर्स के लिए बेहतरीन शॉट्स लेने के लिए उत्तम होती है। सुपरमून शब्द सर्वप्रथम अमेरिकी खगोलविद रिचर्ड नोल द्वारा वर्ष 1979 में प्रयोग किया गया था। सुपरमून कोई आधिकारिक खगोलीय शब्द नहीं है।
' पूर्ण चंद्रमा का अपने परिक्रमा पथ पर पृथ्वी से न्यूनतम दूरी पर होना सुपरमून है।'
आओ जाने क्या हैं ब्लू मून?
वर्ष मास गणना के दो तरीके हैं एक सौर वर्ष व दूसरा चंद्र वर्ष। एक सौर वर्ष के 12 महीनों (365.24 दिन) में 12 चंद्र मास के कुल दिनों (354.36 दिन) से कुछ दिन (5.88 दिन) अधिक होते हैं। इसलिए प्रत्येक 2.7154 वर्ष के अंतराल पर एक मौसम खंड में 3 की बजाय 4 पूर्णिमाएँ पड़ती हैं। इस स्थिति को साधारण शब्दों में कहें तो किसी एक सौर महिने में दो बार चंद्रमा का पूरा निकलना ब्लू मून कहलाता है। इस वर्ष 2 जनवरी को पूर्णिमा थी और अब 31 जनवरी को भी पूर्णिमा है इसलिए 31 जनवरी के पूर्ण चंद्रमा को ब्लू मून नाम दिया गया। खगोल विज्ञान में फार्मर्स अल्मनक द्वारा दी गयी ब्लू मून की इस परिभाषा को सबसे अधिक मान्यता प्राप्त है।
'ब्लू मून एक खगोलीय मौसम में एक अतिरिक्त पूर्णिमा के अस्तित्व की घटना को कहते है।'
क्यों कहते हैं ब्लड मून (ताम्र चंद्र) ?
चंद्रोदय के समय चंद्रमा जैसे ही पृथ्वी की छाया में आएगा तो उसका रंग ताम्बे के रंग जैसा (हल्का लाल) प्रतीत होता है। इस स्थिति में अंतरिक्ष मे चंद्रमा पृथ्वी की परछाई क्षेत्र में होता है तो उस तक सूर्य का प्रकाश केवल पृथ्वी के वायुमंडल से होकर पहुंचता है। मात्र क्रिश्चियन मान्यताओं में ही ब्लड मून का जिक्र है।
यह दुर्लभ नजारा लेने का समय व स्थान:
31 जनवरी से एक दिन पहले आप एक जगह निर्धारित करले जहाँ से पूर्वी दिशा में चंद्रमा को अच्छे से देखा जा सके। आपके शहर या गाँव में 31 जनवरी को चंद्रोदय जितने बजे होगा उस समय से पूर्व वहाँ पहुँच जाएं।
यमुनानगर में 31 जनवरी को चंद्रोदय का समय सायं 5 बजकर 21 मिनट है। अगर मौसम ने साथ दिया तो ये ग्रहण 31 जनवरी को 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 42 मिनट के बीच नजर आएगा। ये नजारा लेने के लिए खुले मैदान में जाकर क्षितिज के साथ से ही चन्द्रोदय के समय से ही उसे देखना होगा। इसके अवलोकन के लिए किसी विशेष उपकरण की आवश्यकता नही होती है। अवलोकन स्थल के आसपास ऊंचे भवन व पेड़ न हों।
इसे भारत के साथ-साथ इंडोनेशिया, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी देखा जायेगा। इसे अमेरिका के अलास्का, हवाई और कनाडा में भी अवलोकित किया जा सकेगा।
मिडिया रिपोर्टस
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Darshan Lal Baweja
Science Teacher Cum Science Communicator
Secretary C V Raman Science Club Yamunanagar
Secretary C V Raman Science Club Yamunanagar
Distt. Coordinator NCSC, Haryana Vigyan Manch Rohtak
Master Trainer for Low/Zero Cost Science Experiments And Hobby Development
7404241300
Web Links
http://gsssalahar.blogspotClick on button below right 'Older Post'
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उत्तम जानकारी
ReplyDeleteआभार