Wednesday, June 10, 2015

मलेरिया-एक चुनौती एवं निवारण के उपाय Malaria

मलेरिया-एक चुनौती एवं निवारण के उपाय
मनुष्य एकमात्र प्राणी है पृथ्वी पर जो अपनी ही दुर्दशा का खुद जिम्मेवार है। एक नहीं बहुत सी समस्याओं का वो खुद ही जनक है और खुद ही उन का भुक्तभोगी भी बना है और उन सब समस्याओं मे एक मलेरिया भी है करोड़ो जाने लेकर भी मलेरिया मानवता का सबसे बड़ा दुश्मन बना है। दुर्भाग्य तो उन का अधिक है जो ठन्डे इलाको मे रहते हैं और वो भी मच्छर के दंश का स्वाद चखना शुरू कर चुके हैं मनुष्य ने तरक्की की है तो मच्छर ने उन से भे अधिक तरक्की की है यदि कल्पना की दुनिया मे जाएं और सोचे उन पराग्रहियों के बारे मे जिन की प्रयोगशाला है पृथ्वी, वो पराग्रही ठहाके मार कर हँसते होगें कि प्रतियोगी पराग्रहियों की रचनाएं मनुष्य और मच्छर अपनी अपनी उत्तरजीविता के लड़ रहे होते हैं। ये तो थी कल्पना की बाते परन्तु वास्तविकता ये है कि मच्छर की प्रतिरोधक क्षमता के आगे मनुष्य बेबस सा प्रतीत होता है और वो उसकी अज्ञानता और चतुराई दोनों को भुना रहा है और पृथ्वी पर अपनी सल्तनत को कायम रखे हुए है।
आओ जाने कैसे?
मलेरिया दुनिया के सबसे अधिक ज्ञात संक्रामक रोगों में से एक रोग है मनुष्य जाति की बहुत बड़ी चुनौती और जन स्वास्थ्य की एक भंयकर समस्या है। इसकी वैक्सीन विकसित करने के लिए बहुत कार्य किये जा रहे हैं और बहुत सी आशातीत सफलताएं भी हाथ लगी हैं शायद वो दिन दूर नहीं है जब बच्चे के पैदा होने के बाद ही उस को प्रतिरोधक बना दिया जाए परन्तु मनुष्य के प्रयास मच्छरों के प्रयासों के आगे अभी शायद छोटे पड़ रहे हैं। पुरापाषाण काल या नवपाषाण काल या हो हमारा सब से पुरातन लिखित इतिहास गवाह है कि मलेरिया तब से लेकर आज तक कायम है और पेड़, अग्नि, सूर्य पहाड़ों के आगे नृत्य करके इसको भगाने का दावा करते आदिम मानव बुरी हवा बताया, डरा कर टोना टोटका करते ओझा सयाने इसके कहर को रोक ना पाए। आधुनिक चिकित्सा ने इससे होने वाले जान के नुकसान को काफी कम किया है परन्तु इसका समूल नाश ना कर सके  क्यों?
मैंने यह जानने का प्रयास किया तो पाया कि हम भले ही आयातित मलेरिया को ना रोक पायें परन्तु रिहायशी इलाको मे अपनी हल्की समझ का प्रयोग करके इसको कम कर सकते हैं भयंकर जनसंख्या के दबाव जो झेलते हमारे चरमराए शहर उन की नालियां और पानी के निकासी के उचित प्रबंधन से त्रस्त हमारे घर, घरों की छतों पर पड़े पानी के जमावड़े हमारी बेवकूफियों का परिणाम हैं हम खुद बुलाते हैं अपने शत्रुओं को और फिर मनुष्य की उभयनिष्ठ फितरत के मुताबिक़ नगर निगम, स्वास्थ्य विभाग और यहाँ तक कि सरकार और भगवान को भी कोसने लगते हैं कि उस का किया धरा है यह सब कुछ!
जहां तक हम खुद दोषी हैं मेरे शहर का कसूर।
पानी की निकासी का उचित प्रबंधन ना होना।
ऊचें नीचे भूखंड जहां वर्षा का पानी एकत्र हुआ रहता है।
अनाधिकृत कालोनियां जहां न विकास और ना पानी का निकास, खाली पड़े भूखंड मे 10-12 घरों का पानी आना और जमा होते रहना।
सड़को के किनारों की नीचे जहा साल साल भर पानी खडा रहता है।
रिहायशी इलाको मे दूध की डेयरियां (मुम्बैया भाषा मे भैंसों के तबेले)
घरों के आंगन व छतों पर पानी के भरे गमले, बर्तन, टायर, डिब्बे आदि
अपने काम का ज्ञान ना होने का उदाहरण
सुबह सुबह का नजारा नगर निगम की एक महिला सफाई कर्मचारी कुछ दुकानों व एक दो शोरूम के आगे से झाडू लगा कर अपनी ड्यूटी पूरी करती है और एकत्र कचरे को आग लगा देती है जिस मे बहुत सी पोलीथीन प्लास्टिक भी है और वो जलता हुआ कचरे का ढेर बहुत देर तक सुलगता रहता है। धुंआ फैलता रहता है जिसे देख कर ठोस कचरा प्रबंधन के निम्नतर तरीके की नुमाइश पर सड़क भी हंस रही होती है कि वाह रे मानव तेरा मैनजमेंट कितने गजब का है जहां सफाई कर्मचारी को पता ही नहीं कि ठोस कचरे से अधिक घातक उसको जला देना होता है। सफाईकर्मी की नौकरी लगने के साथ ही उस को कानूनन यह प्रशिक्षण दिया जान अनिवार्य होना चाहिए कि उसने ठोस कचरे को जलाना नहीं है चाहे  उसके द्वारा एकत्र किया गया ढेर एक सप्ताह तक पड़ा रहे, उसकी कचरा जलाने के पीछे दलील यह है कि इसे उठाने की मेरी ड्यूटी नहीं है इसे रेहड़ी वाला उठाएगा और वो मुख्य कूड़ेदान तक ले जाएगा और फिर निगम की गाड़ी उस कचरे को डम्पिंग तक लेकर जायेगी। रेहड़ी वाले का पद रिक्त है और मेरे कार्यक्षेत्र  मे नहीं आता कि मैं उसका काम करू मैंने सिर्फ झाड़ू से एकत्र करना है इसलिए ये यहाँ पड़ा ना रहे मैंने इसे जला दिया। आपसी समायोजन से एक दूसरे की कमियों को पर्दा डालकर काम करते सफाई कर्मचारी ही काफी है दुनिया को समाप्त करने के लिए और अति तो तब हो जाती है जब यह पता चलता है कि वो सफाई कर्मचारी जिन दुकानों के आगे रोज सुबह सफाई करती है उन से प्रतिमाह पैसे लेती है व निगम से तनख्वाह अलग से, यानी कि हम जनता अपनी मौत का सामान खुद कर के रूप मे निगम को धन देकर ढो रहे हैं।
उक्त उदाहरण की तर्ज पर ही है मच्छर/मलेरिया उन्मूलन प्रबंधन                 
सुबह सुबह का नजारा श्रीमान जी कार धो रहे हैं पानी बहा रहे हैं जो कि सड़क के किनारे गड्ढे ने जा रहा है कार रोज धोनी है क्यूंकि नहाते भी रोज हैं और गड्ढा जो है पानी से लबालब रहता है यहाँ रौब है ताकत है और प्रबंधन की भयंकर कमी है। माली क्यारियों को लबालब कर रहा है और काम वाली बाई रोज आंगन को धो धोकर पानी की नदियाँ बहा रही है पानी के टैंक और कूलर ओवरफ्लो होते हैं दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि हमे आता क्या है बस अपने धन व सम्पति का कुशल प्रबंधन, जो कि दिन रात के हिसाब से गुणज हो रही है और प्रबंधन के नाम पर हम रोज फेल हो रहे हैं।
लार्वा अवस्था मे ही मार डालो मच्छर को?

मच्छरों को समाप्त करने के वैश्विक प्रयासों मे जैविक नियंत्रण विधी पर वैज्ञानिकों, मलेरिया कर्मियों और जागरूक नागरिकों का ध्यान गया है जिस के अंतर्गत बिना किसी कीटनाशक का प्रयोग किये बिना अंडा/लार्वा अवस्था मे ही मच्छरों को समाप्त कर दिया जाए। इसके लिए लार्वा को खाने वाले अन्य लार्वा को खोजा गया है और उनकी संख्या को बढ़ाने के प्रयास किये जा रहे हैं जबकि तालाब मे कुछ ऐसी छोटी मछलियाँ गम्बेज़ी (Gambusia affinis) पाली जा रही हैं जो कि लार्वा और अण्डों को खा जाती हैं इया जैविक नियंत्रण विधि मे रासायनिक पदार्थों के समावेश और जैव आवर्धन के जोखिम कम हैं।
हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का कहना है कि बच्चों को अधिक से अधिक कल्पना करना चाहियें और उनको सोचना चाहिए कि पृथ्वी पे जीवन को और अधिक सुखमय बनाने के लिए क्या क्या होना चाहिए और क्या कुछ जरूरी है सोचो सोचो और सोचो ताकि हमारे वैज्ञानिक आपकी कल्पना को मूर्त रूप दे सके।
कल्पना जैसे कि लार्वा मारे जा सकते हैं 

मच्छर को लार्वा अवस्था मे मारने के वैश्विक प्रयासों मे क्या योगदान हो सकता है एक गड्ढे मे पानी भरा और लार्वा को खोजने का प्रयत्न किया फिर घर पर एक बड़े बर्तन मे पानी डाल कर रखा ताकि मच्छर उस पानी की तरफ आकर्षित हो सके और एक महीन कपड़ा डाल दिया जाए जो कि बर्तन की तली तक जाए और जब मच्छर अंडे दे और उसमे से लार्वा निकले तो उस कपडे को पलट देवें जिस से लार्वा और अंडे नीचे चले जाएं व सांस लेने के अभाव मे मर जाएं। जमीन मे खड्डा था उस मे पानी भरा रहता है और आसपास से पानी के पूर्ति नाली से होती थी जो नाली चाय की दूकान के बर्तन धोने वाले ने बनायी थी उस पानी पर मच्छर बैठे रहते थे वहां ये जानने का प्रयास किया कि मच्छर के लार्वा को कैसे मारा जाए। 
बर्तन मे लार्वा किलर बना कर देखा और जाना कि लार्वा को मारे जाने के लिए किये जा रहे वैश्विक प्रयासों मे हम क्या कर सकते हैं। एक पानी से भरा टब लेकर उस पर एक महीन नायलोन का कपड़ा बाँध देते हैं इसको ऐसे स्थान पर रखते हैं जहां थोड़ी गर्मी अधिक हो इस पानी से आकर्षित होकर मादा मच्छर इस पर बैठती है और अंडे देती है जिस से लार्वा निकलते हैं टब इस कपड़े को पलट देते हैं और लार्वा व अंडे कपड़े के नीचे चले जाते है और मर/नष्ट हो जाते हैं।
निवारण के उपाय
भौतिक, जैविक नियंत्रण विधियों से मच्छर को नियंत्रण मे लेना।
मलेरिया की और वाहक मच्छर से फैलने वाले रोगों की वैक्सीन/टीकाकरण के लिए सभी देशों के डाक्टर वैज्ञानिक मिल कर प्रयास करें व सफलता हासिल करें।
आम आदमी, अध्यापक. विद्यार्थी, वैज्ञानिक व सरकारें इसके हल के लिए काम करें।
आदमी की जान की कीमत समझे उसे बचाएं जागरूक करें व जनसंख्या का भार भी कम करें ताकि वास स्थलों पर अतिरिक्त दबाव कम हो सके।
मच्छरदानी के प्रयोग को बढ़ाया जाए।
जनता जागरूक हो और उसे इसके बचाव के सभी तरीके पता हो और वो उन की पालना भी करें।   
व्यापक प्रचार हो कि टिकिया, रिपेलेंट, स्प्रे आदि सब हानिकारक हैं परन्तु इसके उत्तम विकल्प तक इन्हें बंद ना किया जाए नहे तो जो जाने बच रही है इनके कारण वो जोखिम मे पड़ जायेंगी
मादा मच्छर दिन में काटता है, इसलिए दोपहर में मच्छरों से बचाव पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए पूरे कपडे पहने जाएं और जनता को पूरे कपड़े मिले इस की व्यवस्था भी की जाए।
एचआईवी एड्स की तर्ज पर मुहीम चलाई जाए
सरकार के सभी निकाय तालमेल व प्रबंधन से काम करें
कुछ हिन्दी फिल्मो मे एकाध हीरो हीरोइन को मलेरिया और डेंगू से पीड़ित दिखाया जाए और उसे बड़ी मुश्किल से बचाया जाए क्यूंकि फिल्मे समाज को सिखा रही हैं ....फिल्मो मे भी हाई प्रोफाइल बीमारी कैंसर आदी तो दिखाए जाते है और आम तौर पर मलेरिया को गरीबो की बीमारी माना जाता है फिल्मो मे नामी हीरो बाद मे सारे वो उपाय करे जो कि एक आम आदमी भी उस से प्रेरित होकर मलेरिया के बचाव मे करे क्यूंकि भारतीय फीचर फिल्म्स भारतीय समाज को बहुत कुछ सिखाते है। आदि 
मच्छर का डंक
और खून का चूसना
प्लाज्मोडियम का प्रवेश
और बदन का कपकपाना
तपना और तपते ही जाना
फिर अचानक ठंडा हो जाना
कहर नहीं ये कुदरत का
ये आप का अपना ही है खुद को नजराना

1 comment:

टिप्पणी करें बेबाक