Saturday, August 02, 2014

उज्जैन पहुंचे साइंस के मास्टर Ujaain the City of Kaal Ganna

उज्जैन पहुंचे साइंस के मास्टर Ujaain the City of Kaal Gnana
पृथ्वी की परिधि नापने यमुनानगर से उज्जैन पहुंचे साइंस मास्टर

देश-विदेश से खगोलविद आज भी स्टीक काल गणना के लिए उज्जैन आते है 

सी वी रमण विज्ञान क्लब सरोजिनी कालोनी के सदस्यों ने पृथ्वी की परिधि नापने के प्रयोग को और बेहतर तरीके से सम्पन्न करने के लिए कर्क रेखा पर स्थित नगरी उज्जैन का रुख किया।  अपने क्लब सदस्यों शिरीष शर्मा, अनिल गुप्ता व वीरेंद्र बजाज के साथ उज्जैन व डोंगला मे पृथ्वी की परिधि नापने का प्रयोग किया। यहाँ से प्राप्त आंकड़ों को मुंबई स्थित वासनजी एकेडमी विज्ञान क्लब के सदस्यों के आंकड़ों के मिला कर गणना के द्वारा पृथ्वी की परिधि ज्ञात की गयी। क्लब समन्वयक दर्शन लाल ने बताया कि इस प्रयोग के लिए स्टीक आंकड़े प्राप्त करने के लिए वह खुद व क्लब सदस्यों शिरीष शर्मा, अनिल गुप्ता व वीरेंद्र बजाज के साथ उज्जैन की जीवाजी वेधशाला व काल गणना वेधशाला डोंगला गए, वहां उन्होंने 20 व 21 जून को कर्क रेखा पर स्थित तीन अलग अलग जगह प्रयोग करके प्रेक्षण लिए। जीवाजी जंतर मंतर वेधशाला उज्जैन और भारतीय काल गणना केन्द्र पद्म श्री डा विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला डोंगला तहसील महिदपुर जिला उज्जैन के प्रेक्षण और यमुनानगर व मुंबई  के प्रेक्षण से प्राप्त रीडिंग  को सूत्रों में प्रतिस्थापित करके पृथ्वी की परिधि इरेटोस्थनीज़ विधि से पृथ्वी की परिधि ज्ञात की गयी।

क्या है विधि?
विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल बवेजा ने बताया कि इस प्रयोग के लिए सबसे पहले दो स्थानों का चयन किया जाता है, उन दो स्थानों में यदि एक स्थान ऐसा है जो कि कर्क रेखा स्थित पर है। २१ जून को जिस समय वहां शंकु यंत्र (नोमोन) की परछाई शून्य हो जाती है तो उस समय वहाँ सूर्य का उन्नयन शून्य प्राप्त होगा। उसी समयांतराल में यह प्रयोग दूसरी युग्म टीम किसी दूसरे स्थान पर कर रही होती है जो की कर्क रेखा से अच्छी खासी अक्षांशीय दूरी पर हो। दोनों टीमों के न्यूनतम परछाई से प्राप्त उन्नयन कोणों के अंतर को सूत्र में दोनों स्थानों के बीच अक्षांशीय दूरी के साथ प्रतिस्थापित किये जाने पर गणितीय हल से पृथ्वी की परिधि ज्ञात हो जाती है। इस तरह से प्राप्त परिणाम की पृथ्वी की मानक परिधि के साथ तुलना करके त्रुटि ज्ञात की जाती है जितनी कम त्रुटि होगी उतना ही स्टीक परिणाम माना जाएगा। पृथ्वी की परिधि का स्टैंडर्ड मान 40075 किलोमीटर है।

कौन कौन शामिल हुआ इस प्रयोग मे 
इस प्रयोग मे उज्जैन व डोंगला मे क्लब सदस्य शिरीष शर्मा, अनिल गुप्ता व वीरेंद्र बजाज ने दर्शन लाल के नेतृत्व मे कमान संभाली जबकि मुंबई मे वासन जी एकेडमी विज्ञान क्लब के समन्वयक विशाल जे सावंत ने अपनी टीम के साथ यह प्रयोग ठीक उसी समयांतराल पर किया और यमुनानगर मे क्लब सदस्यों अमन, आंचल, पारस, अभिजात व पार्थवी ने प्रयोग को अंजाम दिया।
 
क्या है लाभ?
क्लब प्रवक्ता अनिल गुप्ता व शिरीष शर्मा बेंजवाल ने बताया कि आधुनिक विज्ञान ने भौतिकवाद को बढ़ाया है सभी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी को समझें आधुनिक विज्ञान एवं देशज विज्ञान खगोल के प्रति विद्यार्थियों को शिक्षित करें। भारत में हर एक क्षेत्र में असीमित विविधितायें है। इस विशाल विविधता के मध्य भारत की एकता समझने योग्य है। यहां सबको एक इकाई से जोड़ने वाले अनेक सूत्र हैं। यही भावना बच्चों के कोमल मन में भरी जानी चाहिए। बच्चों को उनके आसपास उपलब्ध वनस्पतियों व जीवों और प्राकृतिक व खगोलीय घटनाओं की जानकारी स्थानीय भाषाओं की प्रयोगों के माध्यम से दी जानी चाहिए और उनमे उनके संरक्षण व प्रचार को मुख्य तौर पर रेखांकित किया जाना चाहिए।
मनुष्य को अपने प्राचीन विज्ञान को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों व खगोलविदों ने साधनों के आभाव में वर्षों के प्रायोगिक अनुभव से काल गणना करना सीखा और समस्त विश्व को भी सिखाया यदि ऐसा है तभी तो विदेशों से खगोलविद आज भी स्टीक काल गणना के लिए उज्जैन आते है। इस बार भी इस दुर्लभ दृश्य के गवाह बनने के लिए देश भर के खगोल वैज्ञानिकों के साथ आम लोग भी उज्जैन जिले के इस छोटे-से गांव डोंगला में उमड़ पड़े।  22 जून से सूर्य सायन कर्क राशि में प्रवेश करके दक्षिण की ओर गति करना प्रारंभ कर देगा। ज्योतिष शास्त्र की जुबान में इसे सूर्य का दक्षिणायन होना कहा जाता है। इसके बाद रात के मुकाबले दिन लगातार छोटे होते जाते हैं। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग करोडो रुपयों की लागत से उज्जैन जिले में कर्क रेखा पर भारतीय काल गणना केन्द्र पद्म श्री डा विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला व शोधकेन्द्र का निर्माण करवा रहा है। यहीं पर कोणार्क सूर्य मंदिर की तर्ज पर विशाल सूर्य मंदिर निर्माण का प्रस्ताव भी है। दोनों के बन जाने पर उज्जैन जिला विश्व के नक़्शे पर एक और कुम्भ मेले ‘खगोलविदो का कुम्भ’ के लिए विश्वविख्यात हो जाएगा।
साल में चार बार इस प्रयोग से पृथ्वी की परिधि ज्ञात करके बच्चे बहुत ही लाभान्वित होते हैं और शुद्ध देसी काल गणना विधि के ज्ञान पाकर लाभान्वित होते हैं साथ ही उनके मन में प्राचीन भारतीय विज्ञान के प्रति सम्मान व जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
अखबार मे 







2 comments:

  1. SAMAST BALKON /BALIKAON TATHA ADHYAPAK DAL KO VISHESH SHUBHKAMNAYEN

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  2. Ganna ki vidhi bhi samjhate to aour adhik achhitarah se samajh me aajata esi prakar grahan ki bhavish vani ka gnit kese kiya jata he samjha ye
    dhanyawad manohar chandel

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