Friday, August 15, 2014

बच्चे छोटे पर काम बड़े Science Exhibition

बच्चे छोटे पर काम बड़े Science Exhibition 
वाटर लिफ्टिंग 
 गत दिनों स्थानीय स्प्रिंग डेल्स पब्लिक स्कूल जगाधरी वर्कशाप मे आयोजित विज्ञान एवं आर्ट क्राफ्ट प्रदर्शनी को विशेष निमंत्रण पर  देखने के लिए जाने का अवसर मिला तो पाया कि अध्यापकों, अभिभावकों और स्कूल प्रशासन की बेहतरीन तालमेल के फलस्वरूप  कुछ भी ऐसा असंभव नहीं जो प्राप्त ना किया जा सके बस मेहनत और लगनशीलता होनी चाहिए
स्प्रिंग डेल्स पब्लिक स्कूल जगाधरी वर्कशाप एक निजी संचालित कक्षा सात तक का स्कूल है जो कि निरंतर प्रगति की और अग्रसर है और इस विद्यालय की प्रधानाचार्या अनीता सरदाना का कहना है कि उन्होंने एक खास उद्देश्य को लेकर इस स्कूल की शुरुवात की थी जिसमे कि गुणवतापूर्ण शिक्षा प्रदान करना एक मुख्य घटक था


नर्वस सिस्टम 
उन्होंने बताया कि वर्षों की अथक मेहनत के बाद उनका विद्यालय आज इस मुकाम पर है कि जिले मे प्राथमिक स्तर पर इतनी गतिविधियो को शामिल करके शिक्षा देने मे उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। विज्ञान प्रदर्शनी, बाल विज्ञान कांग्रेस, विज्ञान प्रश्नोत्तरी, विज्ञान मेला, विज्ञान नाटक और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ आर्ट एंड क्राफ्ट, रोबोट व प्रेक्टिकल कार्यशालाएं आदि प्रतियोगिताओं मे भाग लेकर स्कूल के विद्यार्थियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है और पुरूस्कार भी जीते हैं। 
प्लांट सेल 


इस विज्ञान प्रदर्शनी का उद्घाटन जिला सुचना अधिकारी श्री रमेश गुप्ता और सरपंच श्री सेवा सिंह ने किया और इस अवसर पर उन्होंने पृथ्वी की सुरक्षा के संदेश का आवहान करता हाइड्रोजन गैस से भरा एक रंगबिरंगा गुब्बारों का गुच्छ भी आकाश मे छोड़ा और बाद मे उन्होंने एक एक प्रतिभागी के पास जाकर उसके विज्ञान माडलों के बारे मे पूछा और मुक्त कंठ से बच्चों और अध्यापकों की प्रशंसा की


अभिकेन्द्र बल Centripetal force को प्रदर्शित करता एक प्रयोग

एक बोर्ड पर चारों कोनों मे सुराख करके नाइलोन की रस्सी से बराबर बाँध लेते हैं केन्द्रीय गाँठ से उपर की रस्सी की लम्बाई अपने कद के मुताबिक़ रखते हैं और उस पर तीन चार पात्र पानी से भर कर रखते हैं


फिर इस को नियमित और सावधानी पूर्वक घुमाने से हम देखते हैं कि पानी के पात्र नहीं गिरते है ऐसा क्यों होता है इस को इस लिंक से जाने 


देखें इस बालक का ये प्रयोग करते हुए वीडियो 



विभिन्न प्रकार के पुलों के बारे मे बताता माडल 



अखबार मे 





             

Saturday, August 02, 2014

उज्जैन पहुंचे साइंस के मास्टर Ujaain the City of Kaal Ganna

उज्जैन पहुंचे साइंस के मास्टर Ujaain the City of Kaal Gnana
पृथ्वी की परिधि नापने यमुनानगर से उज्जैन पहुंचे साइंस मास्टर

देश-विदेश से खगोलविद आज भी स्टीक काल गणना के लिए उज्जैन आते है 

सी वी रमण विज्ञान क्लब सरोजिनी कालोनी के सदस्यों ने पृथ्वी की परिधि नापने के प्रयोग को और बेहतर तरीके से सम्पन्न करने के लिए कर्क रेखा पर स्थित नगरी उज्जैन का रुख किया।  अपने क्लब सदस्यों शिरीष शर्मा, अनिल गुप्ता व वीरेंद्र बजाज के साथ उज्जैन व डोंगला मे पृथ्वी की परिधि नापने का प्रयोग किया। यहाँ से प्राप्त आंकड़ों को मुंबई स्थित वासनजी एकेडमी विज्ञान क्लब के सदस्यों के आंकड़ों के मिला कर गणना के द्वारा पृथ्वी की परिधि ज्ञात की गयी। क्लब समन्वयक दर्शन लाल ने बताया कि इस प्रयोग के लिए स्टीक आंकड़े प्राप्त करने के लिए वह खुद व क्लब सदस्यों शिरीष शर्मा, अनिल गुप्ता व वीरेंद्र बजाज के साथ उज्जैन की जीवाजी वेधशाला व काल गणना वेधशाला डोंगला गए, वहां उन्होंने 20 व 21 जून को कर्क रेखा पर स्थित तीन अलग अलग जगह प्रयोग करके प्रेक्षण लिए। जीवाजी जंतर मंतर वेधशाला उज्जैन और भारतीय काल गणना केन्द्र पद्म श्री डा विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला डोंगला तहसील महिदपुर जिला उज्जैन के प्रेक्षण और यमुनानगर व मुंबई  के प्रेक्षण से प्राप्त रीडिंग  को सूत्रों में प्रतिस्थापित करके पृथ्वी की परिधि इरेटोस्थनीज़ विधि से पृथ्वी की परिधि ज्ञात की गयी।

क्या है विधि?
विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल बवेजा ने बताया कि इस प्रयोग के लिए सबसे पहले दो स्थानों का चयन किया जाता है, उन दो स्थानों में यदि एक स्थान ऐसा है जो कि कर्क रेखा स्थित पर है। २१ जून को जिस समय वहां शंकु यंत्र (नोमोन) की परछाई शून्य हो जाती है तो उस समय वहाँ सूर्य का उन्नयन शून्य प्राप्त होगा। उसी समयांतराल में यह प्रयोग दूसरी युग्म टीम किसी दूसरे स्थान पर कर रही होती है जो की कर्क रेखा से अच्छी खासी अक्षांशीय दूरी पर हो। दोनों टीमों के न्यूनतम परछाई से प्राप्त उन्नयन कोणों के अंतर को सूत्र में दोनों स्थानों के बीच अक्षांशीय दूरी के साथ प्रतिस्थापित किये जाने पर गणितीय हल से पृथ्वी की परिधि ज्ञात हो जाती है। इस तरह से प्राप्त परिणाम की पृथ्वी की मानक परिधि के साथ तुलना करके त्रुटि ज्ञात की जाती है जितनी कम त्रुटि होगी उतना ही स्टीक परिणाम माना जाएगा। पृथ्वी की परिधि का स्टैंडर्ड मान 40075 किलोमीटर है।

कौन कौन शामिल हुआ इस प्रयोग मे 
इस प्रयोग मे उज्जैन व डोंगला मे क्लब सदस्य शिरीष शर्मा, अनिल गुप्ता व वीरेंद्र बजाज ने दर्शन लाल के नेतृत्व मे कमान संभाली जबकि मुंबई मे वासन जी एकेडमी विज्ञान क्लब के समन्वयक विशाल जे सावंत ने अपनी टीम के साथ यह प्रयोग ठीक उसी समयांतराल पर किया और यमुनानगर मे क्लब सदस्यों अमन, आंचल, पारस, अभिजात व पार्थवी ने प्रयोग को अंजाम दिया।
 
क्या है लाभ?
क्लब प्रवक्ता अनिल गुप्ता व शिरीष शर्मा बेंजवाल ने बताया कि आधुनिक विज्ञान ने भौतिकवाद को बढ़ाया है सभी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी को समझें आधुनिक विज्ञान एवं देशज विज्ञान खगोल के प्रति विद्यार्थियों को शिक्षित करें। भारत में हर एक क्षेत्र में असीमित विविधितायें है। इस विशाल विविधता के मध्य भारत की एकता समझने योग्य है। यहां सबको एक इकाई से जोड़ने वाले अनेक सूत्र हैं। यही भावना बच्चों के कोमल मन में भरी जानी चाहिए। बच्चों को उनके आसपास उपलब्ध वनस्पतियों व जीवों और प्राकृतिक व खगोलीय घटनाओं की जानकारी स्थानीय भाषाओं की प्रयोगों के माध्यम से दी जानी चाहिए और उनमे उनके संरक्षण व प्रचार को मुख्य तौर पर रेखांकित किया जाना चाहिए।
मनुष्य को अपने प्राचीन विज्ञान को नहीं भूलना चाहिए क्योंकि प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों व खगोलविदों ने साधनों के आभाव में वर्षों के प्रायोगिक अनुभव से काल गणना करना सीखा और समस्त विश्व को भी सिखाया यदि ऐसा है तभी तो विदेशों से खगोलविद आज भी स्टीक काल गणना के लिए उज्जैन आते है। इस बार भी इस दुर्लभ दृश्य के गवाह बनने के लिए देश भर के खगोल वैज्ञानिकों के साथ आम लोग भी उज्जैन जिले के इस छोटे-से गांव डोंगला में उमड़ पड़े।  22 जून से सूर्य सायन कर्क राशि में प्रवेश करके दक्षिण की ओर गति करना प्रारंभ कर देगा। ज्योतिष शास्त्र की जुबान में इसे सूर्य का दक्षिणायन होना कहा जाता है। इसके बाद रात के मुकाबले दिन लगातार छोटे होते जाते हैं। मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग करोडो रुपयों की लागत से उज्जैन जिले में कर्क रेखा पर भारतीय काल गणना केन्द्र पद्म श्री डा विष्णु श्रीधर वाकणकर वेधशाला व शोधकेन्द्र का निर्माण करवा रहा है। यहीं पर कोणार्क सूर्य मंदिर की तर्ज पर विशाल सूर्य मंदिर निर्माण का प्रस्ताव भी है। दोनों के बन जाने पर उज्जैन जिला विश्व के नक़्शे पर एक और कुम्भ मेले ‘खगोलविदो का कुम्भ’ के लिए विश्वविख्यात हो जाएगा।
साल में चार बार इस प्रयोग से पृथ्वी की परिधि ज्ञात करके बच्चे बहुत ही लाभान्वित होते हैं और शुद्ध देसी काल गणना विधि के ज्ञान पाकर लाभान्वित होते हैं साथ ही उनके मन में प्राचीन भारतीय विज्ञान के प्रति सम्मान व जिज्ञासा उत्पन्न होती है।
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