रोल प्ले के माध्यम से जाना धूमकेतू को Role Play on WSW
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सौरमंडल मे धूमकेतु का पथ |
आज विश्व अंतरिक्ष सप्ताह के तीसरे दिन सी वी रमण विज्ञान क्लब के सदस्यों ने रोल प्ले व सोलर सिस्टम का रेखाचित्र माडल के द्वारा धूमकेतु व अन्य खगोलीय पिंडो का अध्यन किया। आज बच्चों ने पार्क मे आये स्थानीय कालोनी निवासियों को भी सूर्य, ग्रहों और पुच्छल तारे के बारे मे बताया। अगले माह दृश्यमान पुच्छल तारे आइसोन के बारे मे जान कर सभी लोग बहुत उत्साहित थे और उन्होंने क्लब सदस्यों व मुकुंद लाल पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों से इस धूमकेतु के बारे मे बहुत सी जानकारियां हासिल की।
क्या है ये पुच्छल तारा ?
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धूमकेतू बनाया |
क्लब प्रभारी विज्ञान अध्यापक दर्शन बवेजा ने पुच्छल तारों के बारे मे बताया कि यदा कदा एक चमकता धूमकेतु रात के आसमान में दिखाई पड़ता है। नक्षत्रों के बीच धीरे धीरे गुज़रते हुए उसका एक धुंधला सा सिर और लम्बी पूंछ बनती जाती है। इस दृश्य ने हमेशा से ही मानव को मंत्रमुग्ध कर दिया है और इसके इर्द गिर्द कई कहानियों, मिथक कथाओं और अंधविश्वासों ने जन्म लिया है। सौर मंडल में धूमकेतु सबसे अविकसित वस्तु है। धूमकेतु में वाष्पशील पदार्थ बहुत ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं, जिसके कारण यह बहुत ही महत्वपूर्ण और अनोखे पिंड हैं। उनकी इस खासियत से पता चलता है कि धूमकेतु सूर्य से बहुत दूरी पर बने थे और तब से बहुत ही कम तापमान पर सरंक्षित भी हैं।
धूमकेतु से क्यों डरते थे लोग ?
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रोल प्ले के माध्यम से |
पुराने ज़माने में लोगो के हर कार्य व व्यवस्था का सूचक आकाश ही होता था। उनकी सूर्योदय, सूर्यास्त, चाँद का घटना बढ़ना, तारों की निश्चित चाल और आकृति पर पैनी नजर होती थी । धूमकेतु अचानक बिना किसी चेतावनी के आ जाने वह उसको किसी दिव्य चेतावनी के रूप में लेते थे और किसी अनहोनी के धटने से आशंकित होकर डर जाया करते थे। हर पुरानी सभ्यता में इनका रिकार्ड रखा था। धूमकेतु का सबसे पहला रेखाचित्र चीन की सिल्क किताब में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में मिलता है।
प्राचीन भारत के इतिहास मे भी धूमकेतु का ज़िक्र है
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सौरमंडल मे धूमकेतु का पथ |
अभी तक धूमकेतु के कोई भी प्राचीन चित्रों का पता नहीं चला है। प्राचीन साहित्य में ज़रूर इनका ज़िक्र है। अथर्ववेद में धूमकेतु व उल्का पिंड से रक्षा के लिए प्रार्थना है। धूमकेतु के प्रकट होने का उल्लेख महाभारत और रामायण में भी है। छठी शताब्दी में वराहमिहिर ने करीब एक हज़ार धूमकेतु और उन्हीं के समान अन्य पिंडों को अपनी पुस्तक बृहतसाम्हित में संकलित और वर्गीकृत किया। उसी किताब में कुछ धूमकेतु के मार्गों का विवरण भी है। उसमें कालकेतु नाम के धूमकेतु का वृत्तांत है जो वेगा नाम के तारे के पीछे छिपा है। तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती ने उन्नीस सौ दस ईस्वी में हेली धूमकेतु के स्वागत में उस समय एक छंद लिखा जब बाकी सब लोग घबराए हुए थे।
अठ्ठाईस नवम्बर 2013 को आइसोन धूमकेतू सूर्य के सबसे नजदीक होगा।
वाह! बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteअति प्रशंसनीय.