Tuesday, December 03, 2013

सरंजाम तक ना पहुँच सका पुच्छल तारा आइसोन Comet ISON Ends

अपने सरंजाम तक ना पहुँच सका पुच्छल तारा आइसोन, अवलोकनार्थी निराश हुए 

ऐसे दिखने की सम्भावनाएं व्यक्त की गयी थी 
सूर्य निगरानी अंतरिक्ष यान सोहो(SOHO) ने
 अगले दिन जब सूर्य की परिक्रमा के बाद जब वापसी मे सूर्य के आभामंडल
 मे धूमिल सा होता धूमकेतू देखा 
आज सी वी रमण विज्ञान क्लब यमुनानगर के सदस्यों को आइसोन धूमकेतु के सूर्य से परिक्रमण के दौरान नष्ट हो जाने के बारे मे बताया गया।  विज्ञान क्लब के प्रभारी दर्शन बवेजा ने बताया कि क्लब सदस्य पूरे साल से इस धूमकेतू के प्रचार व इसके अवलोकन की योजनाओं मे व्यस्त थे और इसके नष्ट हो जाने से कईं क्लब सदस्य जिन्होंने अपने जीवन का पहला पुच्छल तारा देखना था वे बहुत निराश हुए परन्तु खगोलीय घटनाएं ऐसी ही हैरतंगेज होते हैं; इसको अनुभव करके रोमांचित भी हुए। इस बारे और विस्तार से बताते हुए विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल बवेजा ने बताया कि एक वर्ष से आइसोन धूमकेतू की इन्तजार मे दुनिया भर के खगोलविद, अंतरिक्ष वैज्ञानिक व आकाश दर्शन प्रेमी अपनी पलके बिछाये बैठे थे लेकिन अठ्ठाइस नवम्बर को सूर्य के नजदीक पहुँचते ही धूमकेतु उसकी प्रचंड गर्मी तथा शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण को बर्दाश्त नहीं कर सका और समाप्त हो गया।  आइसोन धूमकेतू जो कि अत्याधिक कौतुहल का विषय बना हुआ था, उससे आशा कि जा रही थी कि यह धूमकेतु “सदी का धूमकेतु” साबित होगा और अपनी चमक से वह रात्रि आकाश मे चंद्रमा के जैसे दिखेगा।  यह धूमकेतु सूर्य का चक्कर लगाकर अपनी वापसी की यात्रा के दौरान पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध मे सम्पूर्ण दिसम्बर माह व जनवरी तक अद्भूत नजारा देने वाला था परन्तु वह सूर्य की परिक्रमा के दौरान अपनी इस आत्मघाती यात्रा मे टुकड़े टुकड़े हो गया और उसकी समस्त बर्फ वाष्पित होकर सौरमंडल मे विलीन हो गयी।  अमेरिकी व  यूरोपीय स्पेस एजेंसी का सूर्य निगरानी अंतरिक्ष यान सोहो(SOHO) ने अगले दिन जब सूर्य की परिक्रमा के बाद जब वापसी मे सूर्य के आभामंडल मे धूमिल सा होता धूमकेतू देखा तो खगोल वैज्ञानिकों को यह उम्मीद जागृत हुयी थी कि शायद आइसोन धूमकेतू   बच गया हो परन्तु सूर्य की प्रचंडता से बाहर आते ही वैज्ञानिकों ने घोषित कर दिया कि वह अपनी चिर यात्रा को अंजाम नहीं दे सका और पृथ्वी वासियों की आशाओं पर पानी फेरता यह धूमकेतु आइसोन अन्य कईं सन ग्रेजर (रवि चारण) धूमकेतुओं की तरह सूर्य की ही आहुति बन गया है।  
नये ज्ञान से वंचित रह गए हम
पिछले साल जब यह धूमकेतू बृहस्पति ग्रह के पीछे था तब इसे खोजा गया था और इसका नामकरण उसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने नाम पर आइसोन किया गया था।  यह धूमकेतु अपनी अप्रत्याशित दीप्ती के कारण वैज्ञानिकों मे बहुत उत्सुकता का विषय बन चुका था परन्तु खगोल वैज्ञानिकों द्वारा इसके इसी अंजाम की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही थी।  बाह्य सौर मंडल से लाखों वर्षों की यात्रा पर आंतरिक सौर मंडल मे सूर्य की और निकले धूमकेतुओं का यह अंजाम अप्रत्याशित नहीं था।  सन ग्रेजर धूमकेतुओं के सूर्य के निकटस्थ बिंदु पर पहुंचने के बाद बचने की आशा कम होती है, ये सूर्य के अत्याधिक निकट पहुंच जाते है, जिससे भिषण गर्मी से उनकी बर्फ पिघल कर उड़ जाती है और सूर्य के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से उनके केंद्रक के टूकडे हो जाते है।  परन्तु आइसोन के नष्ट होने से कुछ नयी खोजों और ग्रहों पर जीवन उत्पत्ति सम्बंधित कईं रहस्यों के बेपर्दा होने की सम्भावनाओं पर भी पानी फिर गया जिसकी की आशा बहुत से वैज्ञानिकों को थी।
क्या हुआ आइसोन धूमकेतू का हश्र ? 
वाशिंगटन स्थित नेवल रिसर्च लेबोरेट्री मे सोलर डिस्क पर नजर रख रही दूरबीन के संचालक खगोल वैज्ञानिक कार्ल बट्टामस को नासा टीवी पर सीधे प्रसारण के समय धूमकेतू के सूर्य परिक्रमण मे सूर्य के पीछे से कुछ भी नहीं निकलता दिखाई दिया।  तीन सौ पचास किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से इस धूमकेतू ने सूर्य के वातावरण मे प्रवेश किया था।  बृहस्पतिवार की रात्री को जब यह धूमकेतू सूर्य की परिक्रमा पथ पर सूर्य से मात्र 120 लाख किलोमीटर दूर था तब ये इस पर नजर रख रहे अंतरिक्ष सौर दूरबीन को यह अंतिम बार नजर आया फिर सूर्य की आभा मंडल से पार होता अपने ही केन्द्र मे सिकुड़ता व चमकता हुआ ऐसे लगा कि शायद यह बच गया परन्तु ऐसा नहीं हो सका।  सूर्य के वातावरण मे पहुँचते ही उसको पांच हज़ार डिग्री फारेनहाइट (२७६० डिग्री सेल्सियस) तापमान का सामना करना पड़ा।  इतने प्रचंड तापमान मे उसकी सारी बर्फ व जमी हुई गैसे पिंघल कर वाष्प बन गयी और आइजोन धूमकेतु सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से अपने आप को टूटने से ना बचा सका।  केन्द्र(कोमा) के रूप मे बचा उसका बड़ा सा पिंड जो कि सिलिकेट(साधारण चट्टान/पत्थर) मे तब्दील हो चुका है वो अपने परिक्रमा पथ पर अग्रसर हो अनंत यात्रा पर वापस निकल गया है वाष्प व धूल की लंबी पूँछ के आभाव मे अब वह चमककर मनुष्य को उसकी नग्न आँखों से नहीं दिख सकेगा और सम्भवत अपनी लाखों वर्षों कि वापसी यात्रा मे वो किसी अन्य पिंड से टकरा कर किसी अन्य ग्रह के निर्माण या फिर किसी अन्य ग्रह या उपग्रह के विनाश का कारण बने। 
आशीष श्रीवास्तव जी का लेख मे अद्यतन करने के लिए धन्यवाद 
अखबारों मे 

                  

     



Wednesday, November 06, 2013

मंगलयान अभियान की बधाइयां Congratulations ISRO

मंगलयान अभियान की बधाइयां Congratulations ISRO 
सी वी रमण विज्ञान क्लब के सदस्यों ने आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा मंगलवार को  मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) के सफल प्रक्षेपण पर खुशियाँ मनाई गयी और बधाइयां दी गयी। क्लब के विज्ञान संचारक दर्शन बवेजा ने क्लब सदस्यों को जानकारी देते हुए बताया कि मंगल ग्रह की और भेजा गया यह मानव रहित मंगलयान अभियान अंतरिक्ष के क्षेत्र मे भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि के रूप मे माना गया है। इस सफल प्रमोचन के बाद भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो विश्व की मंगल अन्वेषण वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गयी है।  अमेरिका, रूस व यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ अब भारत भी मंगल ग्रह आरोहण वाला देश बन गया है जो कि बहुत ही देशवासीयों के लिए बहुत ही गर्व का विषय है। इस कामयाबी के लिए निसंदेह भारत के वैज्ञानिक व दूरंदेशिता वाले हमारे निति निर्धारक बधाई के पात्र हैं।

लंबी दूरी की राकेट यात्रा तकनीक मे प्रवेश 
पीएलएलवी २५ यान ने मार्स आर्बिटर को प्रथम चरण मे पृथ्वी की दीर्घवृताकार कक्षा में प्रवेश कराया गया है। किसी उपग्रह की कक्षा अंतरिक्ष मे वह दीर्घकार अथवा वृत्ताकार पथ होता है जिस पर कृत्रिम उपग्रह किसी ग्रह के चक्कर लगाता है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के इस नये क्षेत्र में प्रवेश करने वाले इसरो के मंगल अभियान का मुख्य उद्देश्य भारत की मंगल ग्रह पर पहुंचने की क्षमता स्थापित करना और मंगल पर मीथेन व जीवन की मौजूदगी पर का पता लगाना है। इसके साथ ही मात्र चार सौ पचास करोड़ के सिमित बजट मे भारत ने अंतरिक्ष अभियान तीन सौ अरब डालर के अंतरिक्ष उपग्रह प्रमोचन के बाज़ार मे अपना कदम रख लिया है और उन देशों की आशाओं पर भी खरा उतरा है जो कि सस्ते व भरोसेमंद अंतरिक्ष उपग्रह प्रमोचन की प्रतीक्षा मे भारत की और नज़रे गढ़ाऐ बैठे थे। विश्व के वे देश जो अपने उपग्रह तो बना लेते हैं पर उनके पास प्रमोचन तकनीक नहीं है उन देशों के लिए भारत आशा की किरण बन कर उठा है अब वे देश इसरो के ग्राहक बन जायेंगे।

क्या क्या काम करेंगें मंगलयान के पांच उपकरण  
मंगल यान में पांच वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं, इन उपकरणों में मीथेन सेंसर फार मार्स, मार्स एक्सोफेरिक न्यूट्रल कंपोजिशन एनालाइजर, मार्स कलर कैमरा, लाइमैन अल्फा फोटोमीटर  और थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है। मार्स आर्बिटर पर लगे यह सभी उपकरण महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध करायेंगे। लाइमैन अल्फा फोटोमीटर  और मीथेन सेंसर फार मार्स वायुमंडलीय अध्ययन में मदद करेंगे मार्स एक्सोफेरिक न्यूट्रल कंपोजिशन एनालाइजर वायुमंडलीय कणों के अध्ययन पर केंद्रित करेंगे। मार्स कलर कैमरा और थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर लाल ग्रह की सतह के चित्र लेने में योगदान देंगे।


नहीं होना चाहिये विरोध इस राष्ट्रीय गर्व का 
जहां तहां यह सुनने पढ़ने को मिल रहा है कि भारत जैसे गरीब देश के लिए अरबों रुपयों का यह मात्र तमाशा है या वैज्ञानिक आतिशबाजी है या शक्ति प्रदर्शन का हेतु लिए महज दिखावा हैं। यह सवाल कई लोगों के जेहन में कौंध रहें है। जबकि मशहूर विज्ञान संचारक डाक्टर अरविन्द मिश्रा का कहना है कि यह भारत को अपनी तकनीकी क्षमता, स्वयं के आंकलन और खुद को साबित करने का एक मौकाहै। आज नहीं तो निकट भविष्य में ही मनुष्यों का मंगल पर पलायन होना ही है बिना मंगल पर पहुंचे मानवता का मंगल नहीं होने वाला है यह तथ्य अब विज्ञानी और विज्ञान कथाकार तरह समझ गए हैं। हमारे स्रोत और संसाधन तेजी से ख़त्म हो रहे हैं, जनसख्या बढ़ रही है। अमेरिका व यूरोप के उन्नत देश गरीब देशों को अंगूठा दिखा मंगल पर मंगल मनाने की जुगत में है,  ऐसे में भारतवासियों का हर वक्त अपनी गरीबी के रुदन की बजाय इस मंगल मुहिम को प्रोत्साहित करना चाहिए क्यूंकि यह पूरी मानवता के भविष्य के लिए करो या मरो का प्रश्न बन चूका है।

मंगलयान के बारे मे कुछ रोचक बाते  
मंगलयान की इस मंगलमय यात्रा के साथ भारत अब चीन व जापान से भी आगे निकल गया है।
मंगल आरोहण पर जाने वाले मंगलयान यानि मार्स आर्बिटर मिशन (मॉम ) का एक मकसद है लाल ग्रह पर मीथेन की उपस्थिति का पता लगाना जो कार्य पहले किसी अभियान ने नहीं जांचा परखा है।
मंगलयान को मंगल पर पहुँचने में दस माह का समय और लगेगा।
समूची दुनिया भारत के इस अभियान को बड़ी व्यग्रता से देख रही है।
मंगलयान का कुल वजन तीन सौ बीस टन है और लगभग 44 मीटर ऊंचा है।
इस यान का नामकरण मंगलयान हमारे प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह जी ने किया था।
इस यान मिशन को पन्द्रह महीनों मे एक हज़ार वैज्ञानिकों की टीम ने सम्मिलित रूप से अंजाम दिया।
किसी भी विकासशील देश का यह अब तक का सबसे बड़ा अभियान था।
मंगलयान बीस करोड़ किलोमीटर की यात्रा तय करेगा।
मंगलयान का प्रमोचन मंगलवार के दिन किया गया।
अखबार मे 



Saturday, October 26, 2013

ताम्बे को सोना चाँदी मे बदलवा लो Gold Magician

ताम्बे को सोना चाँदी मे बदलवा लो Gold Magician
विज्ञान नाटिका शृंखला

मीना की विज्ञान दुनिया 
Meena's  Science World
(नेपथ्य से उठती आवाज ...और फिर एक आदमी का मंच पर अवतरित होना)
गहने साफ़ करवा लो …नए से बनवा लो …..चांदी सोने के गहने धुलवा लो
चमकवा लो नए बना कर दूंगा …………५ रुपयों में ……
औरत-१ : भईया मेरे गहने साफ़ कर दो इन्हें चमका कर नए जैसे बना दो
ठग : ला बहन इन्हें तो मै दो मिनट में चमका देता हूँ
औरत-२ : क्या कर रहे हो तुम सब यहाँ ? (कौतूहलवश पूछती एक अन्य स्त्री)
औरत-१ : बहन मै अपने सोने चांदी के गहने चमकवा रही हूँ ५ रुपयों में
औरत-१ : वाह भईया ! मेरे पास ताम्बे के सिक्के है पुराने समय के, उन को भी चमका दोगे ?
ठग :   अरे मै तेरे ताम्बे के सिक्के को सोने चाँदी के बना दूंगा, मेरे पास चमत्कारी जल है
दोनों औरत : हैरत से, क्या ? सच में (मुंह खुला का खुला रह जाता है)
मै अभी लाई ,यह कह कर वह औरत अपने ताम्बे के सिक्के लेने घर चली गयी
(इतने में उसने, औरत-१ को उस के गहने चमका कर दे दिए)
और कहा,
ठग : इन्हें अब तीन दिन तक पानी में डूबों कर रखना है फिर ये जिंदगी में कभी गंदे नहीं होने के
औरत-२ : लो भईया, ये लो ताम्बे के सिक्के बना दो इन्हें सोने के
(उस ठग ने अपने बक्से से एक चमत्कारी द्रव निकाला, अपने छोटे से स्टोव को जला कर द्रव को गर्म किया और उस में ताम्बे के सिक्के डाल दिए ५-६ मिनट बाद वो चाँदी के बन गए,
अब उसने चिमटी से पकड़ कर उन सिक्को को थोड़ा सा गर्म किया वो सब गर्म हो कर सोने के बनते चले गए)
औरत-१,औरत-२ : वाह जी वाह, आपकी जय हो ….जय हो …
ठग : बहन इनकी गर्मी निकालने के लिए इनको तीन दिन तक पानी में डुबो कर रखना है फिर इनका जो करना है वो कर लेना
औरत-२ : (ठग से बहुत प्रभावित) आप मेरे भी सोने चाँदी के गहने चमका दो
ठग :  लाओ, एक बड़ा सा लाल कपड़ा भी लेती आना
औरत-२ : जी अभी लाई
ठग ने औरत-२ के गहने एक दम बढ़िया चमका दिए,और ठग ने औरत-२ से पूछा क्या वो अपने गहने हीरे पन्ने के बनवाना चाहती है
औरत-२ : हाँ जी हाँ, मुझे हीरे पन्ने बहुत पसंद हैं
(ठग ने लाल कपड़ा मांगा और उस में अपनी पोटली से नकली गहने लपेट कर दे दिए और घर के पूजा स्थल में रख कर आने को कहा)
ठग : औरत-२ से इनको पूर्णीमा के दिन खोल कर देखना इनमे चाँद तारे जैसे रत्न जड़ चुकंगे
औरत-२ : ठीक है जी,मै रख आयी लाल कपडे में लिपटे सारे गहने
ठग : अच्छा अब मै चलता हूँ तीन दिन बाद आ कर  बहन तेरे घर भोजन करूँगा यह कह कर ठग वहां से चम्पत हो गया
(तभी मीना आती है उस को सारी बात पता चलती है कि कोई सोने चांदी के आभूषण चमका गया   है गावं में और ताम्बे  के सिक्कों को चांदी और सोने की अशर्फियाँ में बदल गया है।  मीना को हैरानी होती है,वैज्ञानिक सोच और तार्किक होने के कारण उस को पता था कि चमत्कार कभी नहीं हो सकते चमत्कारों के होने धोखा दिया जा सकता है)
(स्कूल जा कर मीना ने अपने विज्ञान अध्यापक को सारी बात बतायी)
मीना(अध्यापक से) : ऐसा कैसे हुआ,गहने कैसे चमक गए सर ?
विज्ञान अध्यापक : सोने-चाँदी के गहनों को किसी अम्ल-राज (Aqua regia)  में डाल देने से अम्ल-राज  सोने के साथ क्रिया कर के सोने को अपने अंदर घोल लेता है जिस को बाद में अन्य रासायनिक क्रियाएँ करवा कर वापस प्राप्त कर लिया जाता है
मीना : और ताम्बे के सिक्के चाँदी और  सोने में कैसे बदल जाते है ?
विज्ञान अध्यापक : हाँ यह प्रयोग बहुत ज्ञानवर्धक है और तुम्हारे पाठ्यक्रम में भी है कक्षा के सब बच्चों को बुला लो,अब ये प्रयोग मै तुम्हे कर के दिखता हूँ

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(बीकर में 250 ml पानी ले कर उस में 50 ग्राम जिंक चूर्ण व सोडियम हाइड्रोक्साइड NaOH घोल कर गर्म कर लेते है फिर उस गर्म घोल में ताम्बे का सिक्का डाल देते हैं थोड़ी ही देर में जस्तीकरण की क्रिया शुरू हो जाती है और ताम्बे के सिक्के पर जस्त की पतली परत चढ़ जाती है जिस देखने  पर वह सिक्का चांदी जैसा लगने लगता है वास्तव में वह होता है जस्तीकृत कापर का सिक्का) coins gold_1 (3)_cmp

मीना : अब इस  जस्तीकृत सिक्के को सोने का कैसे बनाते है ?
विज्ञान अध्यापक : वो भी बना देते हैं पहले आप बताओ कि पीतल मिश्रधातु किस किस धातु से मिल कर बनी होती है
मीना : ताम्बे और ज़स्ते को पिंघला कर मिलाने से
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विज्ञान अध्यापक : सही कहा,इस सिक्के को देखों इस के नीचे तम्बा और उपर जिंक है अब मै इस सिक्के को गर्म करता हूँ उपर की परत पर पीतल बन जाएगा और जिसे वह ठग सोने का बता कर चला गया




मीना : सच में ! यह तो सोने का ही सिक्का लगता है।  परन्तु उस ने तीन दिन तक पानी में रखने को क्यों कहा ?
विज्ञान अध्यापक : ताकि ठगी का भेद  तीन दिन बाद खुले और कोई उसे ढूंड ना सके
मीना : क्या लाल पोटली वाले गहनों पर हीरे पन्ने जड़ेंगे ?
विज्ञान अध्यापक : नहीं,उस लाल पोटली में तो वो गहने भी नहीं होंगे जो उस औरत-२ ने दिए होंगे,उस पोटली में ठग के द्वारा बदल दिए गए नकली गहने होंगे
मीना : अरे ! ये तो लुट गई बेचारी भोली ओरतें
विज्ञान अध्यापक : तभी तो कहा है लालच बुरी बला और अज्ञानता अति बुरी बला | 
इस पूरे प्रयोग की वैज्ञानिक डिटेल यहाँ पर पढ़े     
प्रस्तुति:- सी.वी.रमन साइंस क्लब यमुना नगर हरियाणा
द्वारा--दर्शन बवेजा ,विज्ञान अध्यापक ,यमुना नगर ,हरियाणा

Thursday, October 17, 2013

खंडच्छायायुक्त चंद्रग्रहण Penumbral lunar eclipse

खंडच्छायायुक्त चंद्रग्रहण Penumbral lunar eclipse
सी वी रमण विज्ञान क्लब के सदस्यों ने चंद्रग्रहण के बारे मे जानकारी ली व अंतर्जाल के माध्यम से चंद्रग्रहण की ताजा जानकारी लेनी सीखी। क्लब प्रभारी विज्ञान अध्यापक दर्शन बवेजा ने बताया कि क्लब सदस्य उन्नीस अक्तूबर,  शनिवार को पूर्णमासी के चन्द्रमा का अवलोकन करेंगे व पृथ्वी की उपछाया से गुजरने के कारण लगने वाले चन्द्रग्रहण के कारण से उसकी धूमिल होती चमक का अवलोकन भी करेंगे।
शनिवार की अलसुबह अवलोकन करेंगे चंद्रमा का 
सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा की विशेष खगोलीय स्थिति अश्विन शुक्ल पूर्णिमा शुक्रवार/शनिवार दिनांक 18/19 अक्टूबर 2013 को चंद्रग्रहण का अद्भुत नजारा दिखाएगी। इस प्रकार के चन्द्रग्रहण को उपछाया चंद्रग्रहण के विशेष नाम से जाना जाता है, कभी कभी इसे खंडच्छायायुक्त चंद्रग्रहण भी कहा जाता है। इस साल कुल तीन चंद्रग्रहण घटित होने थे जिनमे से यह इस वर्ष का अंतिम चंद्रग्रहण होगा। हालांकि यह चंद्रग्रहण भारत मे आंशिक ही दिखाई देगा परन्तु इस कि एक विशेषता यह रहेगी कि चंद्रग्रहण के अलग अलग प्रकारों का अध्ययन करने वालो खगोलप्रेमियों के लिए यह खास महत्व रखेगा। ज्योतिष की भाषा मे इसे मांद्य चंद्रग्रहण भी कहते हैं। यह भी पृथ्वी की छाया की छाया में होने के कारण मान्य नहीं होगा।
कहाँ कहाँ व कब दिखेगा 
18 अक्टूबर की रात को यूरोप, पश्चिमी एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका के पूर्व मे व दक्षिण अमेरिका के पूर्व मे दिखाई देगा। भारत मे 19 अक्टूबर शनिवार की सुबह तीन बज कर तेईस मिनट पर धूमिल (ग्रहण युक्त) चंद्रमा दिखना शुरू होगा व सुबह पांच बज कर बीस मिनट पर अधिकतम रहेगा व इसके बाद क्षितिज के नीचे हो जाएगा।
ग्रहण के दौरान कैसा दिखेगा चंद्रमा 
जब इस प्रकार का आंशिक चंद्रग्रहण होता है, तब चंद्रमा पृथ्वी की हलकी परछाई वाले भाग से होकर गुजरता है इस भाग को पेनुम्ब्रा कहते हैं। इस समय चंद्रमा पर पड़ने वाली सूर्य की रोशनी आंशिक रूप से कटी हुई प्रतीत होती है। पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे चंद्रमा के प्रकाश की तीव्रता इस वक्त कम हो जाएगी और इसमें हल्की-सी लालिमा भी दिखाई देगी। चंद्रमा के एक हिस्से पर ग्रहण को धुंधली परछाई के रूप में देखा जा सकता है यानि कि चंद्रमा के दो हिस्से नजर आयेंगे जिनमे एक हिस्सा दूसरे हिस्से से अधिक धुंधला होगा और पूरे चंद्रमा की चमक भी अपेक्षाकृत कम दिखेगी। इस नजारे को नंगी आंखों से निहारा जा सकेगा।
क्या होता है चंद्रग्रहण  
चंद्रग्रहण वह  खगोलीय स्थिति हैं जब के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब  सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में हों। इस ज्यामितीय अरेंजमेंट के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा की रात को ही हो सकता है। चंद्रग्रहण का प्रकार एवं अवधि चंद्रमा पृथ्वी के सापेक्ष कक्षीय गति की स्थिति पर निर्भर होता हैं।
कितने प्रकार का होता है चंद्रग्रहण 

सूर्य, पृथ्वी व चंद्रमा ज्यामितीय अरेंजमेंट के कारण चंद्रग्रहण तीन प्रकार से दिखाई देता है। पूर्ण चंद्रग्रहण, आंशिक चंद्रग्रहण और खंडच्छायायुक्त चंद्रग्रहण। जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया से पूरी तरह ढका जाता है तब पूर्ण चंद्रग्रहण होता है और जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा के कुछ भाग को दहकती है और कुछ भाग को नहीं तब आंशिक चंद्रग्रहण की स्थिति बनती है परन्तु जब चंद्रमा पृथ्वी की बाह्य छाया मे से गुजरता है तो उसका एक हिस्सा धूमिल दिखाई पड़ता है और यह एक दुर्लभ प्रकार का चन्द्र ग्रहण है जो शुक्रवार की रात से शनिवार सुबह पांच बज कर बीस मिनट तक लगभग तक दिखाई देगा।



Friday, October 11, 2013

आज सम्पन्न हुआ विश्व अंतरिक्ष सप्ताह Last day of World Space Week 2013 today

आज सम्पन्न हुआ विश्व अंतरिक्ष सप्ताह Last day of World Space Week 2013 today

विश्व अंतरिक्ष सप्ताह के अंतिम दिन आज अंतरिक्ष विषय पर बहुत से उपविषयों को समाहित करते हुए एक निबंध प्रतियोगिता करवाई गयी जिसमे 160 प्रतिभागियों ने अपने उदगार कलमबद्ध किये प्रतिभागियों को मोके पर ही निम्न उपविषय दिए गए थे जिस पर बच्चो ने निबंध लिखने थे 
पराग्रही जीवन का अस्तित्व, मंगल ग्रह पर जीवन की तलाश अभियान मे मानव उपलब्धियांरिमोट सेंसिंग से मानवता को लाभपृथ्वी एक विलक्षण ग्रहअंतरिक्ष मे बढ़ता मानव हस्तक्षेप - चिंता एवं निवारणखगोल विज्ञान को भारत की देनवायजर की यात्राअंतरिक्ष क्षेत्र मे भारत का स्थानआईसोन धूमकेतु का आगमन मिथक और शोधदूरसंचार क्रान्ति का जनक अंतरिक्ष विज्ञानदूरदर्शी (टेलीस्कोप) की विकास यात्राबस हमारा सौर मंडल कोई दुसरा नहींभारतीय चंद्रयान अभियान विकास यात्राज्योतिष और खगोल विज्ञानधूमकेतू पृथ्वी पर जीवन के जनकअंतरिक्ष विज्ञान अध्ययन क्षेत्र मे व्यावसायिक सम्भावनायेअंतरिक्ष यात्रियों व वैज्ञानिकों के जीवन पर प्रकाश आदि विषयों पर मुक्तहस्त  निबंध लेखन के लिए दो घंटे का समय प्रदान किया गया था बच्चों ने बहुत ही उत्साह से इस मुक्तहस्त निबंध लेखन मे भाग लिया और अपने विचारों को प्रकट किया
निबन्धों की झलकियां 
दूरसंचार क्रान्ति का जनक अंतरिक्ष विज्ञान विषय पर लिखते हुए बताया कि  उपग्रह तकनीक के कारण ही दूरसंचार के साधन टेलीफोन, फैक्स, इंटरनेट, टेलीविजन आदि काम करते हैं।  उपग्रह संचार प्रणाली के द्वारा ही मौसम की  मोनिटरिंग की जाती है जिससे वर्षा, बाढ़, चक्रवात, अतिवृष्टी, दावानल, बर्फबारी आदि प्राकृतिक आपदाओं का पता लगता है। उपग्रह संचार प्रणाली की नयी तकनीक  द्वारा ही आजकल कृषि की  मोनिटरिंग की जाती है जिस में फसल का रकबा, बीमारी आदि का पता मिनटों में लगाया जा सकता है। कृत्रिम उपग्रह से जीपीएस प्रणाली से सड़क, वायु, जल परिवहन में बहुत लाभ लिए जा रहें हैं। रिमोट सेंसिंग के द्वारा उन दुर्गम स्थानों का अध्ययन किया जा रहा है जहां पहुँच पाना अतिकठिन होता है। अंशुल आदि ने लिखा कि इन सब प्रत्यक्ष लाभों के अलावा कृत्रिम उपग्रहों  के  और भी कुछ लाभ हैं जिन से हम सुदूर अंतरिक्ष अन्य आकाश गंगाओं व अपने सौर मंडल की महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं।
आंचल ने कहा कि बिना कृत्रिम उपग्रहों के मोबाइल फोन मात्र प्लास्टिक के खिलोने ही तो हैं मोबाइल फोन अंतर्राष्ट्रीय काल पूर्णतया उपग्रहीय दूरसंचार प्रणाली के उपर निर्भर है आज अगर हमे यहां से न्यूयार्क बात करनी है तो यह चंद सेकिंड्स की दूरी पर ही तो है। देश की रक्षा और सीमाओं की सुरक्षा, विज्ञान और खोज, नेविगेशन, ट्रैकिंग, मानचित्रण सब कार्य उपग्रहीय प्रणाली से ही तो सरल व सुलभ हो पायें हैं।
अंतरिक्ष मे  बढ़ रहे मानवीय हस्तक्षेप पर चिंतित दिखे विद्यार्थी  
दूसरी तरफ कृत्रिम उपग्रह प्रणाली व अंतरिक्ष में मनुष्य बढ़ते के हस्तक्षेप पर चिंता व्यक्त करते हुए पारुल आदि ने लिखा कि इस हस्तक्षेप से ओजोन की परत को नुकसान पहुंचता है और दुश्मन देश के जासूसी उपग्रहों से देश की सुरक्षा को खतरा पहुँच सकता है। आंतकवादी इस अत्याधुनिक तकनीक का लाभ उठा कर कोई नुकसान पहुंचा सकते हैं। अमन, अंकित व राहुल ने स्पेस वार पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा कि  अंतरिक्ष युद्ध मानवता के लिए खतरा है क्यूंकि यह सैद्धांतिक रूप से सम्भव हो चुका है कि अंतरिक्ष में मिसाइल आदि अस्त्रों को स्टोर कर के रखा जा सकता है और वहाँ से किया गया एक वार आणविक बम्ब जितना नुकसान करेगा।
अंतरिक्ष के क्षेत्र के महानुभावों को भी किया याद 
बच्चों ने नील आर्मस्ट्रोंग, एडविन एल्ड्रिन जूनियर, यूरी गागरिन, राकेश शर्मा, कल्पना चावला, सुनीता विलियम, विक्रम साराभाई, डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, माधवन नायर आदि अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के जीवन पर भी प्रकाश डाला गया व साथ ही साथ मार्स रोवर क्यूरियोसिटी, भारतीय चंद्रयान अभियान, गाड पार्टिकल, डार्क मैटर, सन स्पाट, इसरो और नासा के बारे में भी लिखा।
कुल कितने प्रतिभागी  
अंतरिक्ष सप्ताह के आयोजन मे कुल तीन स्कूलों के पांच सौ से अधिक प्रतिभागियों ने आठ इवेंट्स मे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से भाग लिया जिनमे से नब्बे बच्चों ने मेरिट प्रमाण पत्र प्राप्त किये  
प्रमाण पत्र वितरण 
विश्व अंतरिक्ष सप्ताह के सफल आयोजन में सावियो, मुस्कान, श्रेया, सोम्या, चेतना, सुप्रीत, नमन, सोनल, शुभदीप, संयम, सूर्यांश, मिलन, अमीषा, ललित,आकांक्षा, योगिता, रमनीत कौर, भारत, जतिन, हर्षित, लोकेन्द्र, याशिका, अरुष्प, दिशांत, विभूति, रागिनी, दक्ष, अभिषेक, कार्तिक, मिहिर, लक्ष्य, हर्षिता गौतम, हर्षिता शर्मा, निकिता, हर्ष, हार्दिक, भौरम, जोया, नेहा, हिमांशु, योगेश, किरण, अनिकेत, अंशुल, कपिलचौहान, सलमान, शुभम, लवली, गौरव, निशा, अंजू, आरती, अनु, सोनिया, पूजा, दिव्या, आंचल, पलक, पारस, अमन, सोनाक्षी, रीमा, आंचल, आरुषि, शगुन, स्पर्श गम्भीर, अवनि, इशप्रीत, जसमीत, काजल, पार्थवी आदि क्लब सदस्यों का  योगदान  सराहनीय रहा। 
विज्ञान अध्यापिकाओं ममता वर्मा, रोमी बक्शी, किरण मनोचा, पूजा कालरा, मिशिका, अमनदीप कौर, साक्षी सिक्का, आदि का योगदान सराहनीय रहा 
अखबार मे  


   

Wednesday, October 09, 2013

विश्व अंतरिक्ष सप्ताह का छठा दिन 6th day of WSW 2013

विश्व अंतरिक्ष सप्ताह का छठा दिन 6th day of WSW 2013
विश्व अंतरिक्ष सप्ताह के छटे दिन हस्त चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन 
ललित, रवनीत कौर व हर्षित ने प्रथम स्थान प्राप्त किया
विश्व अंतरिक्ष सप्ताह के छटे दिन आज सी वी रमण विज्ञान क्लब के सदस्यों ने जलीय रंगों से अपने बाजुओं पर पेंटिंग करके सभी को आश्चर्य चकित कर दिया। 
स्पेस थीम पर यह प्रतियोगिता कक्षा छह के विद्यार्थियों के बीच करवाई गयी थी। इस प्रतियोगिता मे खास बात यह थी कि अपने एक हाथ से अपनी ही दूसरी बाजू   पर चित्रकारी करनी थी।
विज्ञान अध्यापिकाओं मिशिका, पूजा कालरा व किरण मनोचा के कुशल मार्गदर्शन मे सत्तर बच्चो ने इस हस्त चित्रकला प्रतियोगिता मे भाग लिया व वाटर कलर्स से अंतरिक्ष थीम पर चित्रकारी करके अपने हुनर से सबका मन मोह लिया। 
इस नवाचारी प्रतियोगिता मे बच्चो ने एक से बढ़ कर एक चित्र बनाया और प्रमाणपत्र व पुरस्कार जीते। विज्ञान विभागाध्यक्षा ममता वर्मा ने हस्त चित्रकला प्रतियोगिता के परिणाम घोषित किये। ललित, रवनीत कौर व हर्षित ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। आकांक्षा, भारत व लोकेन्द्र ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया। योगिता, जतिन व याशिका ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।    
क्लब सचिव दर्शन बवेजा ने बताया कि कल विश्व अंतरिक्ष सप्ताह के अंतिम दिन विज्ञान निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन करवाया जाएगा। इस निबंध लेकन प्रतियोगिता मे कक्षा नवम से बारहवी तक के विद्यार्थी भाग लेंगे। इस निबंध प्रतियोगिता के विषय अंतरिक्ष मे मानवीय हस्तक्षेप, पराग्रही जीवन का अस्तित्व, मंगल पर जीवन की सम्भावना व भारत का विश्व को खगोल मे योगदान आदि विषय रखे गये हैं। प्रधानाचार्या शशी बटला  ने सभी विजेता व प्रतिभागियों को बधाई व शुभकामनाये दी। 
शहीद नवीन वैद राजकीय विद्यालय माडल टाउन मे विश्व अंतरिक्ष सप्ताह की गतिविधियां करवायी गयी 
शहीद नवीन वैद राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय माडल टाउन मे विज्ञान अध्यापक दर्शन बवेजा ने विश्व अंतरिक्ष सप्ताह की गतिविधियां करवाई। बच्चो को  सेफ सोलर फिल्टर से सूर्य का अवलोकन करवाया गया। सेफ सोलर फिल्टर से सूर्य का अवलोकन करके बच्चे और अध्यापक बहुत प्रसन्न हुए। 
अखबारों मे