अपने सरंजाम तक ना पहुँच सका पुच्छल तारा आइसोन, अवलोकनार्थी निराश हुए
ऐसे दिखने की सम्भावनाएं व्यक्त की गयी थी |
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सूर्य निगरानी अंतरिक्ष यान सोहो(SOHO) ने अगले दिन जब सूर्य की परिक्रमा के बाद जब वापसी मे सूर्य के आभामंडल मे धूमिल सा होता धूमकेतू देखा |
आज सी वी रमण विज्ञान क्लब यमुनानगर के सदस्यों को आइसोन धूमकेतु के सूर्य से परिक्रमण के दौरान नष्ट हो जाने के बारे मे बताया गया। विज्ञान क्लब के प्रभारी दर्शन बवेजा ने बताया कि क्लब सदस्य पूरे साल से इस धूमकेतू के प्रचार व इसके अवलोकन की योजनाओं मे व्यस्त थे और इसके नष्ट हो जाने से कईं क्लब सदस्य जिन्होंने अपने जीवन का पहला पुच्छल तारा देखना था वे बहुत निराश हुए परन्तु खगोलीय घटनाएं ऐसी ही हैरतंगेज होते हैं; इसको अनुभव करके रोमांचित भी हुए। इस बारे और विस्तार से बताते हुए विज्ञान अध्यापक दर्शन लाल बवेजा ने बताया कि एक वर्ष से आइसोन धूमकेतू की इन्तजार मे दुनिया भर के खगोलविद, अंतरिक्ष वैज्ञानिक व आकाश दर्शन प्रेमी अपनी पलके बिछाये बैठे थे लेकिन अठ्ठाइस नवम्बर को सूर्य के नजदीक पहुँचते ही धूमकेतु उसकी प्रचंड गर्मी तथा शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण को बर्दाश्त नहीं कर सका और समाप्त हो गया। आइसोन धूमकेतू जो कि अत्याधिक कौतुहल का विषय बना हुआ था, उससे आशा कि जा रही थी कि यह धूमकेतु “सदी का धूमकेतु” साबित होगा और अपनी चमक से वह रात्रि आकाश मे चंद्रमा के जैसे दिखेगा। यह धूमकेतु सूर्य का चक्कर लगाकर अपनी वापसी की यात्रा के दौरान पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध मे सम्पूर्ण दिसम्बर माह व जनवरी तक अद्भूत नजारा देने वाला था परन्तु वह सूर्य की परिक्रमा के दौरान अपनी इस आत्मघाती यात्रा मे टुकड़े टुकड़े हो गया और उसकी समस्त बर्फ वाष्पित होकर सौरमंडल मे विलीन हो गयी। अमेरिकी व यूरोपीय स्पेस एजेंसी का सूर्य निगरानी अंतरिक्ष यान सोहो(SOHO) ने अगले दिन जब सूर्य की परिक्रमा के बाद जब वापसी मे सूर्य के आभामंडल मे धूमिल सा होता धूमकेतू देखा तो खगोल वैज्ञानिकों को यह उम्मीद जागृत हुयी थी कि शायद आइसोन धूमकेतू बच गया हो परन्तु सूर्य की प्रचंडता से बाहर आते ही वैज्ञानिकों ने घोषित कर दिया कि वह अपनी चिर यात्रा को अंजाम नहीं दे सका और पृथ्वी वासियों की आशाओं पर पानी फेरता यह धूमकेतु आइसोन अन्य कईं सन ग्रेजर (रवि चारण) धूमकेतुओं की तरह सूर्य की ही आहुति बन गया है।
नये ज्ञान से वंचित रह गए हम
पिछले साल जब यह धूमकेतू बृहस्पति ग्रह के पीछे था तब इसे खोजा गया था और इसका नामकरण उसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने नाम पर आइसोन किया गया था। यह धूमकेतु अपनी अप्रत्याशित दीप्ती के कारण वैज्ञानिकों मे बहुत उत्सुकता का विषय बन चुका था परन्तु खगोल वैज्ञानिकों द्वारा इसके इसी अंजाम की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही थी। बाह्य सौर मंडल से लाखों वर्षों की यात्रा पर आंतरिक सौर मंडल मे सूर्य की और निकले धूमकेतुओं का यह अंजाम अप्रत्याशित नहीं था। सन ग्रेजर धूमकेतुओं के सूर्य के निकटस्थ बिंदु पर पहुंचने के बाद बचने की आशा कम होती है, ये सूर्य के अत्याधिक निकट पहुंच जाते है, जिससे भिषण गर्मी से उनकी बर्फ पिघल कर उड़ जाती है और सूर्य के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से उनके केंद्रक के टूकडे हो जाते है। परन्तु आइसोन के नष्ट होने से कुछ नयी खोजों और ग्रहों पर जीवन उत्पत्ति सम्बंधित कईं रहस्यों के बेपर्दा होने की सम्भावनाओं पर भी पानी फिर गया जिसकी की आशा बहुत से वैज्ञानिकों को थी।
क्या हुआ आइसोन धूमकेतू का हश्र ?
वाशिंगटन स्थित नेवल रिसर्च लेबोरेट्री मे सोलर डिस्क पर नजर रख रही दूरबीन के संचालक खगोल वैज्ञानिक कार्ल बट्टामस को नासा टीवी पर सीधे प्रसारण के समय धूमकेतू के सूर्य परिक्रमण मे सूर्य के पीछे से कुछ भी नहीं निकलता दिखाई दिया। तीन सौ पचास किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से इस धूमकेतू ने सूर्य के वातावरण मे प्रवेश किया था। बृहस्पतिवार की रात्री को जब यह धूमकेतू सूर्य की परिक्रमा पथ पर सूर्य से मात्र 120 लाख किलोमीटर दूर था तब ये इस पर नजर रख रहे अंतरिक्ष सौर दूरबीन को यह अंतिम बार नजर आया फिर सूर्य की आभा मंडल से पार होता अपने ही केन्द्र मे सिकुड़ता व चमकता हुआ ऐसे लगा कि शायद यह बच गया परन्तु ऐसा नहीं हो सका। सूर्य के वातावरण मे पहुँचते ही उसको पांच हज़ार डिग्री फारेनहाइट (२७६० डिग्री सेल्सियस) तापमान का सामना करना पड़ा। इतने प्रचंड तापमान मे उसकी सारी बर्फ व जमी हुई गैसे पिंघल कर वाष्प बन गयी और आइजोन धूमकेतु सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से अपने आप को टूटने से ना बचा सका। केन्द्र(कोमा) के रूप मे बचा उसका बड़ा सा पिंड जो कि सिलिकेट(साधारण चट्टान/पत्थर) मे तब्दील हो चुका है वो अपने परिक्रमा पथ पर अग्रसर हो अनंत यात्रा पर वापस निकल गया है वाष्प व धूल की लंबी पूँछ के आभाव मे अब वह चमककर मनुष्य को उसकी नग्न आँखों से नहीं दिख सकेगा और सम्भवत अपनी लाखों वर्षों कि वापसी यात्रा मे वो किसी अन्य पिंड से टकरा कर किसी अन्य ग्रह के निर्माण या फिर किसी अन्य ग्रह या उपग्रह के विनाश का कारण बने।
नये ज्ञान से वंचित रह गए हम
पिछले साल जब यह धूमकेतू बृहस्पति ग्रह के पीछे था तब इसे खोजा गया था और इसका नामकरण उसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने नाम पर आइसोन किया गया था। यह धूमकेतु अपनी अप्रत्याशित दीप्ती के कारण वैज्ञानिकों मे बहुत उत्सुकता का विषय बन चुका था परन्तु खगोल वैज्ञानिकों द्वारा इसके इसी अंजाम की सम्भावना भी व्यक्त की जा रही थी। बाह्य सौर मंडल से लाखों वर्षों की यात्रा पर आंतरिक सौर मंडल मे सूर्य की और निकले धूमकेतुओं का यह अंजाम अप्रत्याशित नहीं था। सन ग्रेजर धूमकेतुओं के सूर्य के निकटस्थ बिंदु पर पहुंचने के बाद बचने की आशा कम होती है, ये सूर्य के अत्याधिक निकट पहुंच जाते है, जिससे भिषण गर्मी से उनकी बर्फ पिघल कर उड़ जाती है और सूर्य के शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण से उनके केंद्रक के टूकडे हो जाते है। परन्तु आइसोन के नष्ट होने से कुछ नयी खोजों और ग्रहों पर जीवन उत्पत्ति सम्बंधित कईं रहस्यों के बेपर्दा होने की सम्भावनाओं पर भी पानी फिर गया जिसकी की आशा बहुत से वैज्ञानिकों को थी।
क्या हुआ आइसोन धूमकेतू का हश्र ?
वाशिंगटन स्थित नेवल रिसर्च लेबोरेट्री मे सोलर डिस्क पर नजर रख रही दूरबीन के संचालक खगोल वैज्ञानिक कार्ल बट्टामस को नासा टीवी पर सीधे प्रसारण के समय धूमकेतू के सूर्य परिक्रमण मे सूर्य के पीछे से कुछ भी नहीं निकलता दिखाई दिया। तीन सौ पचास किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से इस धूमकेतू ने सूर्य के वातावरण मे प्रवेश किया था। बृहस्पतिवार की रात्री को जब यह धूमकेतू सूर्य की परिक्रमा पथ पर सूर्य से मात्र 120 लाख किलोमीटर दूर था तब ये इस पर नजर रख रहे अंतरिक्ष सौर दूरबीन को यह अंतिम बार नजर आया फिर सूर्य की आभा मंडल से पार होता अपने ही केन्द्र मे सिकुड़ता व चमकता हुआ ऐसे लगा कि शायद यह बच गया परन्तु ऐसा नहीं हो सका। सूर्य के वातावरण मे पहुँचते ही उसको पांच हज़ार डिग्री फारेनहाइट (२७६० डिग्री सेल्सियस) तापमान का सामना करना पड़ा। इतने प्रचंड तापमान मे उसकी सारी बर्फ व जमी हुई गैसे पिंघल कर वाष्प बन गयी और आइजोन धूमकेतु सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से अपने आप को टूटने से ना बचा सका। केन्द्र(कोमा) के रूप मे बचा उसका बड़ा सा पिंड जो कि सिलिकेट(साधारण चट्टान/पत्थर) मे तब्दील हो चुका है वो अपने परिक्रमा पथ पर अग्रसर हो अनंत यात्रा पर वापस निकल गया है वाष्प व धूल की लंबी पूँछ के आभाव मे अब वह चमककर मनुष्य को उसकी नग्न आँखों से नहीं दिख सकेगा और सम्भवत अपनी लाखों वर्षों कि वापसी यात्रा मे वो किसी अन्य पिंड से टकरा कर किसी अन्य ग्रह के निर्माण या फिर किसी अन्य ग्रह या उपग्रह के विनाश का कारण बने।
आशीष श्रीवास्तव जी का लेख मे अद्यतन करने के लिए धन्यवाद
अखबारों मे
