Friday, August 31, 2012

क्लब के सदस्यों ने लिए दुर्लभ ब्लू मून के नज़ारे Blue Moon

क्लब के सदस्यों ने लिए दुर्लभ ब्लू मून के नज़ारे Blue Moon


क्लब सदस्य ब्लू मून देखते
क्लब के सदस्यों ने लिए दुर्लभ ब्लू मून के नज़ारे
आज सी. वी. रमण विज्ञान क्लब के सदस्यों ने दुर्लभ ब्लू मून के नज़ारे लिए। विज्ञान क्लब सदस्यों अमन,आंचल,पलक,पारस,पार्थवी,स्पर्ष गम्भीर ने इस नज़ारे को देखकर नयी जानकारी अपने मस्तिष्क कोष में शामिल की।       
मेरी हथेली में चाँद
क्लब समन्वयक दर्शन लाल ने क्लब सदस्यों को ब्लू मून के बारे में बताया कि किसी भी एक कैलेंडर माह के भीतर जब दो बार पूर्णिमा पड़ती है तो इस घटना को ब्लू मून कहा जाता है। इस घटना का ब्लू मून या चांद के नीले हो जाने से किसी भी प्रकार का कोई संबंध नहीं है। खगोलीय घटनाओं के क्रम में इस साल अगस्त माह में दो बार पूर्णिमा आयी है। पहली पूर्णिमा दो अगस्त को थी व दूसरी 31 अगस्त को थी। वैज्ञानिकों के अनुसार लूनर माह तथा कैलेंडर माह के दिनों में अंतर के चलते ब्लू मून का नजारा हर तीन साल में एक बार दिखाई देता है। इस वर्ष 31 अगस्त के बाद यह नजारा तीन साल बाद 31 जुलाई 2015 में देखने को मिलेगा।
पार्थवी
एक बार में पूरे चांद के बाद 29.5 दिन की अवधि के बाद दोबारा पूरे चांद के दर्शन होते हैं। ब्लू मून का आशय यह बिलकुल नहीं कि उस दिन चांद का रंग नीला दिखाई देगा। उनके अनुसार जब पहली बार इस घटना की पुष्टि हुई थी तब संयोग वश इस घटना को ब्लू मून का नाम दे दिया गया था तब से आज तक यही नाम चला आ रहा है। 
पारस स्पर्ष
दुनिया भर में लिखी गयी बहुत सी कथा कहानियों में ब्लू मून का जिक्र हुआ है।


स्थानीय  अखबारों ने भी प्रमुखता से छापा .....
दैनिक  भास्कर
 अमर उजाला २-९-१२
प्रस्तुति: सी.वी.रमन साइंस क्लब यमुना नगर, हरियाणा
द्वारा: दर्शन बवेजा,विज्ञान अध्यापक,यमुना नगर, हरियाणा







3 comments:

  1. ब्लू मून जैसी अप्रचलित जानकारियाँ सांझा करने के लिये धन्यवाद।

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  2. इस बार तो फ़ेसबुक के माध्यम से पता चल गया था, तो हमने भी नजारे का आनंद लिया, नहीं तो हमारे मीडिया को इसकी फ़ुरसत ही कहाँ है ।

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  3. भारत में सौर ऊर्जा की संभावनाए
    भारत में सौर ऊर्जा की संभावनाए

    भारत में सौर ऊर्जा की असीम संभावनाएँ हैं। गुजरात से प्रेरणा लेकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को भी पहल करनी चाहिए, क्योंकि ये राज्य भी बिजली के संकट से जूझ रहे हैं।
    गुजरात ने अनेक विकास कार्यों के साथ सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी मिसाल कायम की है। ६०० मेगावाट के सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना देश ही नहीं समूचे एशिया के लिए एक उदाहरण है। देश में सौर संयंत्रों से कुल ९०० मेगावाट बिजली पैदा होती है। इसमें ६०० मेगावाट अकेले गुजरात बना रहा है। गुजरात ने नहर के उपर सौर ऊर्जा संयंत्र लगा कर अनूठी मिसाल कायम की है। इससे बिजली तो बनेगी ही, पानी का वाष्पीकरण भी रुकेगा। नहर पर छत की तरह तना यह संयंत्र दुनिया में पहला ऐसा प्रयोग है। पिछले दो माह में २ लाख यूनिट बिजली का इसने उत्पादन किया जा चुका है। गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थापित संयंत्र का कुछ समय पहले ही औपचारिक उद्घाटन हो गया। संयंत्र १६ लाख यूनिट बिजली का हर साल उत्पादन करेगा। साथ ही वाष्पीकरण रोककर ९० लाख लीटर पानी भी बचाएगा। यह संयंत्र आम के आम और गुठलियों के दाम की तरह है।

    चंद्रासन गाँव की नहर पर ७५० मीटर की लंबाई में यह सौर संयंत्र बनाया गया है। इस तरह के संयंत्र की लागत १२ करोड़ रुपए के आसपास आती हैं। चंद्रासन संयंत्र पहला पायलट प्रोजेक्ट होने की वजह से इसकी लागत कुछ अधिक आई है।

    गुजरात में नर्मदा सागर बाँध की नहरों की कुल लंबाई १९ हजार किलोमीटर है और अगर इसका दस प्रतिशत भी इस्तेमाल होता है तो २४०० मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन किया जा सकता है। नहरों पर संयंत्र स्थापित करने से ११ हजार एक़ड भूमि अधिग्रहण से बच जाएगी और २ अरब लीटर पानी की सालाना बचत होगी सो अलग। यह प्रयोग अन्य राज्यों में भी अपनाया जाना चाहिए।

    गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह सुझाव भी वजन रखता है कि तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक की तर्ज पर भारत के नेतृतव में सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन "सूर्यपुत्र देश" बनाया जाए। नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री डा.मनमोहनसिंह को लिखे पत्र में कहा है कि जब जी आठ, दक्षेस, जी २० और ओपेक जैसे संगठन बन सकते हैं तो सौर ऊर्जा की संभावना वाले देशों का संगठन क्यों नहीं बन सकता। भारत ऐसे देशों के संगठन का नेतृत्व कर सकता है और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में शक्ति बनकर अपना दबदबा कायम कर सकता है । भारत में सौर ऊर्जा की असीम संभावनाएं है। गुजरात से प्रेरणा लेकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्यों को भी पहल करनी चाहिए। ये राज्य भी बिजली के संकट से जूझ रहे हैं, जबकि धूप यहाँ साल में आठ महीने रहती है। मध्यप्रदेश सरकार ने सौर ऊर्जा के लिए भूमि बैंक की स्थापना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। अनुपयोगी भूमि को चिन्हांकित कर उन पर सौर संयंत्र लगाने की पहल की जाएगी। महाराष्ट्र सरकार ने भी उस्मानाबाद व परभणी में ५०-५० मेगावाट के दो संयंत्र लगाने की पहल प्रारंभ की है।

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