वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका पर अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन Vaigyaanik Chetna jagane me Antarrashtriy sammelan
आम आदमी तक वैज्ञानिक उपलब्धियों का लाभ पहुंचाने में संचार
माध्यमों की अहम् भूमिका रही है। परन्तु संचार माध्यमों की भूमिका भारत जैसे विविध
संस्कृति वाले देश में और भी जटिल हो जाती है, जहां
इन माध्यमों की सुलभता के लिए ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में बहुत अन्तराल
व्याप्त है। इसी विषय को लेकर दिनांक 29-30 मई 2012 को ‘‘वैज्ञानिक
दृष्टिकोण तथा चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका पर अन्तरराष्ट्रीय
सम्मेलन” आयोजित किया गया। इस आयोजन में देश के विभिन्न राज्यों से आये
वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। फ्रांस रूस और जापान से आये वक्ताओं ने सम्मेलन को सफल बनाने में अपना
सहयोग दिया। मुख्य रूप से सम्मेलन को बारह सत्रों में विभाजित किया गया जिसमें
प्रमुख है शिक्षण संस्थाओं का विज्ञान संचार में योगदान भारतीय भाषाओं में
विज्ञान संचार,
सम्पादन और प्रकाशन की चुनौतियां, विज्ञान
पत्रकारिता एवं विज्ञान संचार, विज्ञान
संचार के नये सांधन,
विज्ञान संचार में नीतिगत मुद्दें आदि।
सम्मेलन में लगभग 150 वक्ताओं एवं प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
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सम्मेलन का शुभारंम |
सम्मेलन का शुभारंम
डा. सुबोध महंती,
निदेशक, विज्ञान
प्रसार ने अपने स्वागत अभिभाषण से किया इसमें उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को
बढ़ावा दिये जाने पर ज़ोर दिया। इसके लिए डा. महंती ने कहा कि समाज के सभी वर्गो के
व्यक्तियों एवं सस्थाओं को जोड़ना चाहिए। साथ ही उन्होंने भारत के प्रथम
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कि दूरगामी दृष्टि की सरहाना की। उन्होंने कहा
कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र में आम आदमी कि भूमिका को
अहम समझा और उसकी भागीदारी को बढ़ाने के लिए प्रयास भी किए। डा. महंती के अनुसार सभी
भारतीय भाषाओं में विज्ञान का प्रचार ज़रूरी है।
डा. गंगन प्रताप,निदेशक निस्केयर ने सम्मेलन को
सम्बोधित करते हुए कहा कि विज्ञान के अधिकतर प्रयास एक ही भाषा तक सीमित है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाने के लिए ज़रूरी है कि विज्ञान का प्रचार सभी क्षेत्रीय
भाषाओं में भी हो। डा. प्रताप ने भी पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा वैज्ञानिक
दृष्टिकोण की भूमिका को हाईलाइट किया। उन्होंने विज्ञान एवं तकनीक को लोगों तक
पहुंचाने के लिए संचार माध्यमों कि भूमिका पर भी चर्चा की। इसमें उन्होंने
इलेक्ट्रॅानिक मीडिया को खास तौर पर ज़रूरी बाताया क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कि पहुंच ज़्यादा है।
सम्मेलन में डा. जी.
एस. रौतेला, महानिदेशक, एनसीएसएम
एक अलग विषय पर बात करते हुए कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नापने का मापदण्ड क्या
हो और इसके सूचक क्या है जिन्हें नापा जा सके। वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नापने के
लिए कोई ऐसा यंत्र बनाया जाए जिसमें सभी भागदारी होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने
एनसीएसएम द्वारा विज्ञान आम आदमी तक पहुंचाने के लिए किये जा रहे प्रयासों की
व्याख्या की।
मुख्य अतिथि डा. लालजी सिहं, उपकुलपति, बनारस
हिन्दु विश्वविद्यालय ने विज्ञान को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचाने पर जोर दिया
उनके अनुसार वैज्ञानिक विकास गांव तक नहीं पहुँचे है जहां देश की कुल आबादी का
60-70 फीसदी हिस्सा इसके लिए जरूरत है कि प्रयास निम्न स्तर से किये जाए। साथ ही
गांव के लिए स्थाई व्यवस्था कि जानी चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के
लिए मौखिक शिक्षा कि बजाए प्रयोगात्मक ज्ञान दिया जाए। इंटरनेट के साथ-साथ और
आधुनिक तकनीकों को गांव तक पहुंचाया जाना चाहिए। डा. सिहं ने इस बात को माना कि
लोगों में उत्सुकता है लेकिन साथ ही इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि
ग्रामीण इलाकों में साधनों की कमी यहां पर उन्होंने मीडिया की भूमिका को अहम
बताया।
प्रोफेसर एस. के. जोशी, पूर्व
महानिदेशक, सीएसआईआर ने आयोजन में भाग लेते हुए कहा की वैज्ञानिक दृष्टिकोण
जन जन तक पहुंचाने की आवश्यकता पर चर्चा की। प्रोफेसर जोशी ने भी ग्रामीण
क्षेत्रों कि तरफ ध्यान देने की ज़रूरत ज़ाहिर की। उन्होंने कहा की वैज्ञानिक
दृष्टिकोण को समझाता है और ये बताता है कि किसी भी बात को विवेचना के साथ ही
अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संचार माध्यम समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण जगाने
में अहम भूमिका निभा सकते है। विशिष्ट वक्ता ने अखबारों में विज्ञान कोलम में और
टी. वी. में विज्ञान स्लोट की कमी पर निराशा जताई। उन्होंने कहा की संचार माध्यमों
के साथ-साथ वैज्ञानिकों की भी जिम्मेदारी है कि वो विज्ञान को लोगों तक पहुंचाने
में सहयोग करें। उनके अनुसार ‘‘इंटरनेट देवो भवः” का
ज़माना आ चुका जिसके ज़रीये क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान को और प्रभावी बनाया जा
सकता है।
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'सम्मेलन छवि' का विमोचन |
पहली बार
हिन्दी माध्यम में आयोजित हो रहे इस सम्मेलन में देश के कोने-कोने से आए हुए
प्रतिभागियों के साथ कुछ विदेशी संचारको ने भाग लिया।
सम्मेलन में मुख्य रूप से जिन बिन्दुओं
पर चर्चा हुई, वे निम्न हैं:
विज्ञान संचार का इतिहास- भूतकाल से
सीख।
भारतीय भाषाओं के माध्यम से विज्ञान
संचार-ऐतिहासिक तथा समकालीन चलन
विभिन्न माध्यमों से विज्ञान-
रेडियो, टेलिविजन तथा इलेक्ट्रानिक मॉस मीडिया
हिन्दी में विज्ञान पत्रकारिता- सम्पादन, प्रकाशन की चुनौतियाँ
स्वयँ करें विज्ञान, विज्ञान संचार के लिए
सृजनात्मक साधन
वैज्ञानिक चेतना जगाने में विज्ञान
संग्रहालयों तथा विज्ञान केन्द्रों की भूमिका
विज्ञान आन्दोलन (जन विज्ञान आन्दोलन, पर्यावरणीय आन्दोलन
एवँ वैज्ञानिक दृष्टिकोण
विकास संचार (स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी,
कृषि, प्रौद्योगिकी आजीविका तथा सशक्तिकरण)
इंटरनेट में हिन्दी- वर्तमान स्थिति
और भविष्य की चुनौतियाँ
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में
शैक्षिक संस्थानों की भूमिका
वैज्ञानिक चेतना जगाने में विज्ञान
कथाओं का योगदान
मल्टीमीडिया में विज्ञान (भारतीय
भाषाओं में साफ्टवेयरों का विकास)
शैक्षिक क्षेत्र में विज्ञान संचार
(विज्ञान क्लब, परीक्षा तथा प्रतियोगिता, प्रदर्शिनी इत्यादि)
समापन
सत्र
समापन सत्र |
आज
हमारे समाज के अजीबोगरीब हालात हैं। चारों ओर अवैज्ञानिक और अंधविश्वासी धारणाओं
का बोलबाला है। इन तमाम परिस्थितियों के बारे में सोचने पर लगता है कि जैसे मुनष्य
को जड़ और विचारहीन बनाने का षडयंत्र सा चल रहा है। इन स्थितियों को रोकना अत्यंत
आवश्यक है। इसके लिए हमें अपने घर से ही शुरूआत करनी होगी। बच्चे इसके लिए सबसे
उचित माध्यम हैं। वे बहुत जिज्ञासु होते हैं, हर बात की तह तक जाना चाहते हैं। यदि हम उनकी जिज्ञासाओं को मरने न दें और
उनके सवालों को प्रोत्साहित करें, तो समाज में वैज्ञानिक
मनोवृत्ति खुद-ब-खुद विकसित होती चली जाएगी।
उक्त
बातें देश के जाने-माने वैज्ञानिक एवँ शिक्षाविद प्रो० यशपाल ने दिनांक 29-30 मई, 2012 को नास्क कॉम्प्लेक्स, पूसा, नई दिल्ल्ली में आयोजित ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा
चेतना जगाने में संचार माध्यमों की भूमिका’ विषयक अन्तर्राष्ट्रीय
सम्मेलन के समापन सत्र में कहीं। इस अवसर पर बोलते हुए शास्त्रीय नृत्याँगना
मल्लिका साराभाई ने कहा कि हमें कभी भी अपने को सर्वज्ञानी मानने की भूल नहीं करनी
चाहिए और हर पल सीखने के लिए तैयार रहना चाहिए। क्योंकि यह दुनिया बड़ी तेजी से
प्रगति की सीढि़याँ चढ़ रही है। यदि हम एक सप्ताह भी सीखने की प्रक्रिया से कट
गये या पीछे हट गये, तो हमारे सामने आउटडेटेड होने का खतरा
पैदा हो सकता है।
सम्मेलन
में सर्वसम्मति से निम्न प्रस्ताव भी पारित किये गये:
1. विज्ञान संचार, विज्ञान जनचेतना, वैज्ञानिक समझ और विज्ञान नीतियों पर काम करने वाले विशेषज्ञों को
अवधारणात्मक मॉडल तैयार करना चाहिए, जो एक ओर तो संस्कृति
आधारित मॉडल विकसित करेगा, ताकि वह संस्कृति विशेष के
अनुरूप वैज्ञानिक दृष्टिकोण की धारणा को समझने में मदद करे और दूसरी ओर विज्ञान
संचारकों को इस धारणा को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाने में मदद करे।
2.
समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास को परखने के लिए उपयुक्त मापन सूचक
(इंडिकेटर) तैयार कने पडेंगे। यह काम आसान नहीं है, इसलिए इस कार्य में रूचि रखने वाली सभी संस्थाओं को एकजुट होकर प्रयास
करना होगा।
3. वर्तमान में भारतीय भाषाओं में प्रशिक्षित विज्ञान संचारकों का काफी
अभाव है। इसलिए समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए नये तथा अधिक कारगर
प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
4. स्कूली विज्ञान शिक्षा पर अधिक ध्यान देना होगा। साथ ही प्रोयोगिक
शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाए, ताकि बचपन में ही वैज्ञानिक
दृष्टिकोण का बीजारोपण किया जा सके। साथ ही साथ कॉलेज, विश्वविद्यालयों
की शिक्षा, पाठ्यक्रम में ऐसी सामग्री विषय शामिल किये जाएं,
जिससे वैज्ञानिक समझ और चेतना का विकास हो।
5. आज सबसे बड़ी जरूरत इस बात की है कि वैज्ञानिक सोच के अनुरूप शिक्षा को
गाँव-गाँव तक पहुँचाया जाए। इसलिए संचार के मौजूदा ढ़ाँचे के बेहतर उपयोग के साथ
ही संचार के नए ढ़ाँचे तैयार करने होंगे।
6. विज्ञान संचार की नई प्रौद्योगिकियों पर आधारित माध्यमों को पूरी ताकत
से अपनाना पड़ेगा।
7.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए सम्बंधित
क्षेत्रीय व राष्ट्रीय संस्थाओं को मिल जुल कर काम करना पड़ेगा, ताकि इस दिशा में वैज्ञानिक चेतना जगाने के
लिए समय-समय पर राष्ट्रीय व क्षेत्रीय अभियान चलाए जा सकें।
8. भारत के प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह वैज्ञानिक
मानसिकता अपनाए और इसके समुचित विकास में अपना हर संभव योगदान दे। इस बात को जन-जन
तक पहुँचाने की आवश्यकता है।
9.
वैज्ञानिकों और सभी बुद्धिजीवियों को कर्तव्य मानकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का
प्रसार करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देना होगा।
10.
आज मीडिया जिस प्रकार अंधविश्वासों और पुरानी रूढि़यों का प्रचार-प्रसार कर रहा
है, उस पर सदन ने चिन्ता व्यक्त करते हुए प्रस्ताव
पारित किया कि न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और प्रशासन
की ओर से इस पर अंकुश लगाने के लिए अविलम्ब कारगर कदम उठाए जाएं।
11. इस बात पर भी चिन्ता जताई गयी कि देश का मीडिया जहाँ अति आधुनिक
प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल अपने हित साधन के लिए करता है, वह
अंधविश्वासों को बढ़ावा देकर आमजन को दिगभ्रमित कर रहा है।
12. भारतीय विज्ञान की उपलब्धियों और वैज्ञानिकों के वर्तमान कार्य को
आमजन तक पहुँचाने की पुरजोर कोशिश की जानी चाहिए।
13. देश में विज्ञान विरोधी बातें जनता में एक अज्ञात भय फैला रही हैं।
विज्ञान संचारकों और अन्य लोगों को एकजुट होकर ऐसे प्रचार के खिलाफ कड़े कानून
बनाने के लिए भरपूर दबाव बनाना चाहिए।
14.
सदन ने इस बात पर भारी चिन्ता व्यक्त की गयी कि देश के कई टीवी चैनल दकियानूसी
और विज्ञान विरोधी हैं। ऐसे चैनल पाखंड को प्रोत्साहित कर रहे हैं, जबकि विज्ञान को समर्पित कोई भी चैनल नहीं है।
आमजन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए देश में पूरी तरह विज्ञान को
समर्पित टीवी चैनल होना चाहिए, जो केवल विज्ञान का संचार करे
और जिसमें आईपीआर नियंत्रणों के बिना संसाधनों को साझा किया जा सके।
15. विज्ञान संचार गतिविधियों के दस्तावेजीकरण के लिए वेब आधरित डेटाबेस
बनाया जाए, जिसमें सफल और असफल दोनों प्रकार के अनुभव एवं
गतिविधियाँ दर्ज हों। सफल विज्ञान संचारकों को प्रोत्साहित और सम्मानित करने के
लिए समुचित संस्थागत व्यवस्था की जाए।
16.
वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवधारण का सम्बंध केवल प्राकृतिक विज्ञान की विधाओं से
नहीं अपितु कला, दर्शन और साहित्य से
भी है। वैज्ञज्ञनिक दृष्टिकोण् के व्यापक विकास के लिए सभी विषयों की परस्पर
सहभागिता की जरूरत है।
17. देशभर में वैज्ञानिक
चेतना के प्रचार-प्रसार को अंजाम देने के लिए विज्ञान संचारकों के लिए रोजगार के
अवसर बढ़ाए जाएँ। साथ ही इस काम में संलग्न संस्थाओं के प्रोत्साहन के लिए
अनुदान की शुरूआत की जाए।